मोदी सरकार के सत्तारूढ़ होने बाद से ही ईवीएम की निष्पक्षता को लेकर विपक्षी दल अपनी आशंका व्यक्त करते रहे हैं। हालांकि मत पत्रों के स्थान पर ईवीएम का प्रयोग मोदी सरकार के सत्ता में आने से कहीं पहले ही चुनाव आयोग करने लगा था। 2004 के आम चुनावों में पहली बार पूरी तरह से मतदान ईवीएम के जरिए ही हुआ था लेकिन उसके दुरुप्रयोग के आरोप 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से उठने शुरू हुए। मामला अदालतों तक पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब ईवीएम मशीनों के साथ वीवीपीएटी का इस्तेमाल किया जाने लगा है। ‘वीवीपीएटी’ लागू होने के बाद से ईवीएम को लेकर विपक्षी दलों का शोर थमा तो अब पोस्टल बैलेट प्रक्रिया पर उसने प्रश्न उठाने शुरू कर दिए हैं। पांच राज्यों में हो रहे चुनावों के दौरान पोस्टल बैलेट को लेकर नाना प्रकार के समाचार सुर्खियों में हैं। उत्तराखण्ड के पूर्व सीएम हरीश रावत ने तो बकायदा एक वीडियो जारी कर डाला है। जिसमें राज्य की डीडीहाट विधानसभा में एक सैन्य सेंटर पर एक ही पार्टी विशेष ‘भाजपा’ के पक्ष में मत पत्रों में ठप्पा लगाता एक सैनिक नजर आ रहा है। दरअसल अब विपक्षी दलों को आशंका सता रही है कि भाजपा इन पोस्टल बैलेट के जरिए चुनाव प्रभावित करने का ‘खेला’ रच रही है। यह आशंका इस चलते भी बलवती हो उठी है कि पहली बार चुनाव ड्यूटी में लगे सरकारी कर्मचारियों और सेना के अलावा 80 बरस से अधिक उम्र के मतदाताओं को भी पोस्ट बैलेट के जरिए अपना मतदान करने की छूट चुनाव आयोग ने दे डाली है। विपक्षी दलों को इस बात पर भी आपत्ति है कि पोस्टल बैलेट से मतदान करने वाले सरकारी कर्मचारियों को अपना पहचान पत्र इस पोस्टल बैलेट के साथ लगाना पड़ रहा है जिससे उनके वोट की गोपनियता भंग होती है। सरकारी कर्मचारी सरकार के डर के चलते निष्पक्षता से मतदान करने से डर सकता है। इतना ही नहीं कई मतदान केंद्रों में मतदाताओं को मतदान करने से रोकने की खबरें भी आ रही हैं। ऐसे मतदाताओं को कहा गया कि उनका मत तो पहले ही पोस्टल बैलेट के जरिए डाला जा चुका है। विपक्षी दलों का मानना है कि कम अंतर से हार-जीत वाली सीटों पर इन पोस्टल बैलेट का दुरूप्रयोग कर भाजपा जीतने का गेम प्लान बना रही है।