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अन्ना हजारे के जबरदस्त आंदोलन से पैदा हुई लोकपाल संस्था अपनी प्रासंगिकता खोती नजर आ रही है। मनमोहन सिंह सरकार लोकपाल सरीखी मजबूत एन्टी करप्शन संस्था बनाने के पक्ष में पहले से ही नहीं थी। अन्ना आंदोलन के दबाव में आकर भले ही लोकपाल बिल संसद ने पारित किया लेकिन केंद्र की सत्ता परिवर्तन बाद भी यह संस्था अपनी जड़ें नहीं जमा सकी है। मोदी सरकार देश के लोकपाल को अभी तक नियमित कार्यालय तक उपलब्ध नहीं करा सकी है। लोकपाल न्यायूमर्ति पीसी घोष वर्तमान में दिल्ली के सरकारी पंच सितारा होटल अशोका में 12 कमरे लेकर अपना दफ्तर चला रहे हैं। हैरानी की बात यह कि केंद्र सरकार ने लोकपाल के लिए मात्र 4 ़29 करोड़ का बजट अभी तक तय किया है जिसमें से 3 ़85 करोड़ अशोका होटल के खाते में जा चुके हैं। खबर यह भी पुख्ता है कि अभी तक दर्ज 1160 शिकायतों में लगभग 1000 शिकायतों पर लोकपाल ने सुनवाई तो की है, लेकिन एक में भी जांच आगे नहीं बढ़ी है।

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