बिहार में सियासी हवा उल्टी दिशा में बह रही है। देशभर में विपक्षी पार्टियों का शासन खतरे में है लेकिन बिहार में भाजपा का राज खतरे में दिख रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी सहयोगी भाजपा को फिर एक बार झटका देने की तैयारी में हैं। चिराग पासवान और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का प्रकरण अभी समाप्त नहीं हुआ है। उनको लग रहा है कि भाजपा उनका सियासी वजूद खत्म करने का तीसरा प्रयास करे उससे पहले वे भाजपा को किनारे लगाने की कोशिश में जुट गए हैं। नीतीश ने इसका संकेत देना शुरू कर दिया है। पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना पहुंचे तो नीतीश ने उनका स्वागत किया लेकिन उनके स्वागत और उनके कार्यक्रम के बारे में किसी अखबार में कोई विज्ञापन नहीं दिया गया। उसके बाद राष्ट्रपति के चुनाव में भी नीतीश ने द्रौपदी मुर्मू का स्वागत भी किया और समर्थन भी दिया लेकिन उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए। उससे पहले पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के विदाई समारोह में भी नीतीश शामिल नहीं हुए थे। जबकि राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में रहते हुए नीतीश ने रामनाथ कोविंद का समर्थन इस आधार पर किया था कि वे बिहार के राज्यपाल थे। लेकिन कोविंद के विदाई समारोह में उन्होंने हिस्सा नहीं लिया। ऐसे में सियासी अटकलें लगाई जा रही हैं कि नीतीश ने भाजपा को छोड़ने का मन बना लिया है। यह भी दावा किया जा रहा है कि भाजपा की ओर से दो बार दूत की तरह भेजे गए धर्मेंद्र प्रधान के समझाने और पूरी भाजपा के सरेंडर का नीतीश पर कोई असर नहीं है। चर्चा है कि नीतीश और लालू प्रसाद के बीच नई सरकार और उसके आगे के चुनावी तालमेल के बारे में सारी बातें हो चुकी हैं। दोनों के बीच हुए समझौते को लेकर दो तरह की खबरें हैं। एक खबर है कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहेंगे और पहले की तरह तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री बनेंगे और अगले चुनाव के बाद नीतीश उनको कमान सौंप देंगे। दूसरी खबर के मुताबिक इस बार नीतीश अपने बड़े भाई लालू प्रसाद का अहसान चुकाने के लिए तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनवाएंगे और खुद दोनों पार्टियों को साथ लेकर लोकसभा चुनाव की तैयारी करेंगे। राजद के पास 80 और जदयू के 45 विधायक हैं। इसके अलावा लेफ्ट के 16 और कांग्रेस के 19 विधायक भी साथ हैं। इसमें खतरा यह है कि तेजस्वी के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई हो सकती है। सरकार गठन के साथ-साथ चुनावी तालमेल की भी बात हो गई है। कहा जा रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां 20-20 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी और सहयोगी पार्टियों को अपने-अपने कोटे से हिस्सा देंगी।