भाजपा को बिहार में अपने दम पर सरकार न बना पाने का बड़ा मलाल लंबे अर्से से परेशान करता आ रहा है। जदयू के साथ बिहार में कुल मिलाकर ग्यारह बरस भाजपा सरकार का हिस्सा जरूर रही है लेकिन जूनियर पार्टनर की हैसियत से। मोदी मैजिक भले ही पूरे देश में जमकर चला हो बिहार के विधानसभा चुनावों में उसका असर भी भाजपा की सरकार बना पाने में विफल रहा है। बिहार के भाजपाई इसके लिए राज्य के डिप्टी सीएम सुशील मोदी को जिम्मेदार मानते हैं। राज्य विधानसभा के चुनावकाल में एक चर्चा सुशील मोदी को लेकर जोरों पर है। सुशील मोदी के ग्रहों में कुछ ऐसा लोचा बताया जा रहा है जिसके चलते वे हमेशा डिप्टी ही बने रहने को अभिशप्त हैं। इन चर्चाओं को हवा देने वाले इसका बकायदा प्रमाण देते घूम रहे हैं। ऐसे सुशील विरोधियों का कहना है कि छात्र राजनीति के दौर में जब लालू प्रसाद यादव पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे तब भी सुशील मोदी बतौर महासचिव उनके डिप्टी ही थे। लालू अपनी पार्टी के अध्यक्ष बने लेकिन सुशील मोदी कभी भी प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष तक न बन सके। वे नेता विपक्ष रहे, उपमुख्यमंत्री भी हैं लेकिन कभी भी नंबर वन नहीं बन पाए। ऐसा कहा जा रहा है कि यदि इस बार भाजपा की सीटें जदयू से अधिक आती हैं और चिराग पासवान के साथ मिलकर सरकार बनती है तो भी सुशील मोदी सीएम नहीं बनेंगे, बल्कि कोई नया चेहरा आलाकमान की पसंद होगा। यदि ऐसा हुआ तो सुशील मोदी के डिप्टी बने रहने के कथित अभिशाप का किवंदति बनना तय है।