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केंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन राज्यमंत्री अजय भट्ट को भाजपा आलाकमान ने जोर का झटका देने का काम कर डाला है। उत्तराखण्ड की रानीखेत विधानसभा से कई बार के विधायक अजय भट्ट हाल-फिलहाल नैनीताल संसदीय सीट से संसद सदस्य हैं। राज्य की राजनीति में लेकिन उनकी कर्मभूमि रानीखेत ही रही है। 2017 के चुनाव भाजपा ने भट्ट के प्रदेश अध्यक्ष रहते लड़े थे। इन चुनावों में भाजपा को दो तिहाई का प्रचंड बहुमत मिला लेकिन स्वयं भट्ट रानीखेत सीट से चुनाव हार गए। तब यह तय था कि भट्ट यदि हारते नहीं तो मुख्यमंत्री अवश्य बनाए जाते। भट्ट की हार का सबसे बड़ा कारण भाजपा से बागी हुए एक नेता प्रमोद नैनवाल का निर्दलीय चुनाव लड़ना था। राजनीति का पाठ भट्ट से ही सीखे नैनवाल कोे बतौर निर्दलीय प्रत्याशी पांच हजार के करीब वोट मिले थे। तब कांग्रेस के नेता करण माहरा ने 19,305 मत प्राप्त कर अजय भट्ट को 4,981 मतों के अंतर से पराजित कर डाला था। यदि नैनवाल निर्दलीय मैदान में न उतरे होते तो भाजपा का वोट बंटता नहीं और भट्ट चुनाव जीत मुख्यमंत्री बन गए होते। भाजपा ने नैनवाल को पार्टी से निष्किासित कर दिया था। ठीक चुनाव से पहले इन्हीं प्रमोद नैनवाल का नाम यकायक भाजपा के चुनावी पैनल में शामिल कर लिया गया। पार्टी सूत्रों की माने तो नैनवाल की पैरवी अल्मोड़ा से सांसद अजय टम्टा ने की। टम्टा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में खासी पकड़ रखते हैं। खबर गर्म है कि अजय भट्ट रानीखेत से अपने करीबी महेंद्र अधिकारी को लड़वाना चाह रहे थे। मुख्यमंत्री धामी की पसंद पार्टी के पुराने नेता कैलाश पंत थे। पार्टी के आंतरिक सर्वे में सबसे पहला नाम धन सिंह रावत का था। टिकट लेकिन संघ के दबाव में प्रमोद नैनवाल को ही मिला। अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र में इसे सांसद अजय टम्टा की जीत और रक्षा राज्यमंत्री की हार के तौर पर देखा जा रहा है। खबर यह भी जोरों पर है कि अब नैनवाल को हराने का ‘खेला’ भाजपा भीतर शुरू हो चला है। बड़ी संख्या में भाजपा के नेता पार्टी छोड़ कांग्रेस में शामिल होने लगे हैं। कहा जा रहा है कि स्वयं अजय भट्ट ने भी इस सीट से दूरी बनाने का मन बना लिया है।

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