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हाल ही में शिमला नगर निगम के चुनाव में अगर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है तो इसमें जिसकी लाठी उसकी भैंस कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। सत्ता पक्ष की ताकत और विपक्ष के संगठन में बदलाव की हुई बेमौसमी बारिश का फर्क तो पड़ता ही है। प्रदेश भाजपा की कमान राजनीति के एक ऐसे चाणक्य के हाथ में है, जहां नीचे से ऊपर तक यानी पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता तक संगठन के प्रति निष्ठा के साथ जुड़ जाता है न कि गुटबाजी में। बावजूद इसके 3 धड़ों में बंटी भाजपा को एकजुट करने में निश्चित ही बड़े बदलावों के कयास लगाए जाने लाजमी भी हो जाते हैं। डॉ राजीव बिंदल जब नगर निगम के चुनाव की जिम्मेवारी के बाद नाहन पहुंचे तो जिला के पांचों विधानसभा क्षेत्रों के दिग्गजों ने शक्ति प्रदर्शन के साथ उनका स्वागत किया। इनमें से कुछ ऐसे भी चेहरे थे जो विपरीत परिस्थितियों के दौरान बिंदल से अक्सर दूरी बनाकर रखते थे। नाहन के दिल्ली गेट से लेकर हिंदू आश्रम तक नए प्रदेश अध्यक्ष का स्वागत जुलूस देखते बन रहा था। विधानसभा चुनाव में उनकी हार से निराश खास कार्यकर्ताओं के चेहरों पर रौनक थी। प्रदेश अध्यक्ष मीडिया से भी रूबरू हुए और स्पष्ट तौर पर संगठन में बदलाव को लेकर उन्होंने ऐसा बयान दिया जिसे लेकर अनुमान लगाया जा रहा है कि नए प्रदेश अध्यक्ष जयराम सरकार के दौरान बैकफुट पर रहे कार्यकर्ताओं को अब फ्रंट फुट पर संगठित कर सकते हैं। जिनमें जिला अध्यक्ष से लेकर मंडलों तक में हाशिए पर रहे पुराने चेहरों को तवज्जो दी जा सकती है। जिसमें न केवल पूर्व में मुख्यमंत्री रहे प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल, शांता कुमार जैसे दिग्गजों के कट्टर समर्थक शामिल होंगे, बल्कि जयराम सरकार के दौरान संगठन में पदों पर बैठे पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को भी संगठन के प्रति दायित्व के साथ बांधा जा सकता है।

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