तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दिल्ली की यात्रा पर हैं। संसद के चालू मानसून सत्र के बीच और उप राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले उनके दिल्ली पहुंचने की खबर से कहा जा रहा है कि उनकी यह यात्रा राजनीतिक परीक्षा की तरह है। इस यात्रा से पता चलेगा कि वे किस तरह की राजनीति आने वाले दिनों में करेंगी। अपनी पार्टी के नंबर दो नेता पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी और उनके करीबियों के यहां ईडी की कार्रवाई में नोटों के अंबार की बरामदगी से ममता बैकफुट पर हैं। यह पहली बार है, जब ममता बनर्जी के तेवर ढीले पड़े हैं। उन्होंने पार्थ चटर्जी का समर्थन करने की बजाय उनको मंत्री पद और पार्टी के सभी पदों से हटाया। साथ ही यह भी कहा कि कानून के हिसाब से पार्थ को जो सजा मिले, उस पर तृणमूल कोई सवाल नहीं उठाएगी। वही जानकारों का कहना है कि 50 करोड़ रुपए से ज्यादा की नकदी और पार्थ चटर्जी की कुर्बानी अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी को बचाने के लिए दी गई है। उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं करने का फैसला भी इसी सौदेबाजी का हिस्सा बताया जा रहा है। ममता बनर्जी की इस बार की दिल्ली यात्रा बहुत अहम है। इस दौरान उनके सोनिया गांधी से मिलने की चर्चा है और उपराष्ट्रपति का चुनाव है। सवाल है कि क्या सोनिया गांधी से मिलने के बाद ममता बनर्जी इरादा बदलेंगी और उनके सांसद कांग्रेस की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा के पक्ष में वोट करेंगे? असल में ममता के इस बार के दिल्ली दौरे की सबसे अहम मुलाकात सोनिया से ही होनी है। उससे पता चलेगा कि ममता बनर्जी किस तेवर और रणनीति के साथ विपक्ष की राजनीति करेंगी। अब तक केंद्र सरकार की बुलाई बैठकों में बगावती तेवर दिखाती रहीं ममता बनर्जी इस बार नीति आयोग की बैठक में शामिल होंगी यह इस बात का संकेत माना जा रहा है कि वे सरकार के साथ ज्यादा टकराव बढ़ाने के मूड में नहीं हैं। कहा जा रहा है कि ममता से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वे विपक्ष की राजनीति करेंगी और सोनिया गांधी के साथ मिल कर रणनीति बनाएंगी? अभी वे जिस स्थिति में दिख रही हैं, उसमें उनसे विपक्षी एकजुटता के लिए काम करने की उम्मीद कम है। हालांकि इस यात्रा में उनके शरद पवार से लेकर अखिलेश यादव और के चंद्रशेखर राव आदि सभी नेताओं से मिलने का कार्यक्रम है।