पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तीसरी बार मुख्यमंत्री बनते ही तृणमूल कांग्रेस के विस्तार अभियान में जोर-शोर से जुट गईं थीं। उन्होंने गोवा, मणिपुर, उड़िसा, त्रिपुरा, मेद्यालय समेत देश के कई राज्यों में कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को साथ लेकर अपने इस अभियान को परवान चढ़ाने का मिशन शुरू किया। दीदी का लक्ष्य 2024 के लोकसभा चुनावों में विपक्षी दलों का नेतृत्व कर पीएम की कुर्सी पाना है। लेकिन इस अभियान के चलते वे अपने ही घर में लापरवाही करने की महाभूल कर बैंठी हैं। पश्चिम बंगाल में उन्होंने तृणमूल को दिग्गज नेताओं की बनिस्पत अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी के हवाले कर डाला। अभिषेक के लिए राष्ट्रीय महासचिव का नया पद बना असीमित अधिकार दे डाले। नतीजा लेकिन उनके मनमाफिक नहीं रहा है। कई वरिष्ठ तृणमूल नेता अभिषेक की कार्यशैली से नाखुश हो बगावत की राह पर जाते नजर आने लगे हैं। इससे घबराई ममता ने अब राष्ट्रीय महासचिव का पद समाप्त कर डाला है। तृणमूल में दीदी के बाद कोई भी नंबर दो की हैसियत पर अब नहीं रह गया है। अपने पुराने साथियों की नाराजगी को दूर करने के लिए ममता ने कांग्रेस की तर्ज पर एक केंद्रीय वर्किंग कमेटी भी बना डाली है। इस कमेटी में 20 बड़े नेताओ को जगह दी गई है। हालांकि अभिषेक इस कमेटी में सदस्य हैं लेकिन उनके नजदीकी नेताओं को दीदी ने इस कमेटी में स्थान नहीं दिया है। पार्टी सूत्रों की मानें तो ममता का लक्ष्य लोकसभा चुनावों में 2014 के समान पार्टी का प्रदर्शन करना है। 2014 में तृणमूल ने 42 लोकसभा सीटों में से 35 सीटें जीत रिकॉर्ड बनाया था। 2019 में उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा। पार्टी केवल 22 सीटें जीत पाई थी। भाजपा ने 18 सीटें जीत ममता के गढ़ में भारी सेंधमारी कर डाली थी। जानकारों की मानें तो अन्य प्रदेशों में अपेक्षित सफलता न मिलती देख अब ममता वापस अपने घर को दुरस्त करने में जुट गई हैं।
बैकफुट पर ममता
