दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच एक बार फिर से तलवारें खींच चुकी हैं। इस बार दिल्ली में पिछले दिनों हुए कौमी दंगों की अदालत में चल रही सुनवाई के लिए दिल्ली पुलिस की तरफ से पैरवी करने वाले वकीलों का मुद्दा दोनों में मध्य बड़ी टकराहट बनता जा रहा है। एलजी चाहते हैं कि इस मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा सुझाए गए वकीलों को नियुक्त किया जाए तो दूसरी तरफ राज्य सरकार अपने पैनल के वकीलों की नियुक्ति पर अड़ी हुई है। सरकार का कहना है कि सरकारी मामलों में पैरवी करने के लिए वकील नियुक्त करना उसके अधिकार क्षेत्र में आता है इसलिए एलजी को इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार कतई नहीं है। सरकार का यह भी कहना है कि दिल्ली पुलिस इन दंगों की सही तरह से जांच नहीं कर रही है जिसके चलते अदालतों में कई बार पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्न उठाए हैं। ऐसे में पुलिस की पसंद के वकील नियुक्त करना जायज नहीं होगा। एलजी लेकिन अपने स्टैंड पर अड़ गए हैं। दिल्ली सरकार ने एक बार फिर कैबिनेट मीटिंग में अपने प्रस्ताव पर चर्चा कर पुलिस द्वारा सुझाए पैनल को ठुकरा दिया है। जानकारों की मानें तो अब यह मामला राष्ट्रपति को भेजा जा सकता है। केंद्र शासित प्रदेश होने के चलते उपराज्यपाल को यह अधिकार प्राप्त है कि चुनी गई सरकार से किसी मसले पर असहमति होने पर वे मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।