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हाल ही में पांच राज्यों के नतीजे आने से पहले कांग्रेस का आत्मविश्वास हिलोरें ले रहा था। इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के साथ कांग्रेस का व्यवहार बहुत सहज नहीं रह गया था। उसे लग रहा था कि नतीजे उसके हक में आएंगे, ऐसे में क्षेत्रीय दलों की उसके साथ बने रहने की मजबूरी होगी। यहां तक कि अखिलेश यादव के खिलाफ तो पार्टी के हर छोटे-बड़े नेताओं ने मोर्चा खोल दिया था। जब नतीजे आए तो कांग्रेस कहीं नहीं दिखाई पड़ी। तेलंगाना की जीत इसलिए खास मायने नहीं रखती, क्योंकि उससे हिंदी पट्टी पर कोई बहुत असर पड़ने वाला नहीं है। जाहिर सी बात है कि अब समाजवादी पार्टी भी हाथ नहीं रखने दे रही। 6 दिसंबर की बैठक के लिए कांग्रेस के कई नेताओं ने अखिलेश यादव से बात करनी चाही, लेकिन अखिलेश ने किसी का फोन रिसीव नहीं किया। अलबत्ता उन्होंने अपना संदेश दिल्ली के नेताओं तक पहुंचा दिया कि यूपी में इंडिया गठबंधन की कमान उन्हीं के हाथ में रहेगी, तभी वह इसमें बने रहने की सोच सकते हैं जिसके बाद अब 19 दिसंबर को होने जा रही महागठबंधन की बैठक से पहले कांग्रेस के बड़े नेता अखिलेश के साथ रिश्ते सामान्य बनाने के लिए तमाम रास्ते तलाश रहे हैं। ऐसे में लालू प्रसाद यादव की याद आना स्वाभाविक है। कहा यह भी जा रहा है कि कांग्रेस के कुछ राष्ट्रीय नेताओं ने लालू यादव से संपर्क कर उनसे अनुरोध किया है कि वह मध्यस्थ बनकर अखिलेश यादव की नाराजगी खत्म करवाएं। उम्मीद जताई जा रही है कि उनकी बात अखिलेश नहीं टालेंगे और लालू ने भी कांग्रेस नेताओं को आश्वस्त किया है कि वह अखिलेश से बात करेंगे। जिसके बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि गठबंधन में पड़ी गांठ को लालू खोल सकते हैं।

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