तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव इन दिनों अपने राज्य में भाजपा के बढ़ते प्रभाव से खासे चिंतित बताए जा रहे हैं। 2014 में तेलंगाना के गठन बाद प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने राव का करिश्मा अब ढलान की तरफ जाता नजर आ रहा है। राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में राव की पार्टी टीआरएस कांग्रेस को 119 सीटों में से 63 सीटें मिली थी। तब मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस मात्र 21 सीटें जीत दूसरे स्थान पर रही थी और औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम ने सात सीटों पर जीत दर्ज कराई थी। 2018 के चुनाव में टीआरएस कांग्रेस को 88 सीटें मिली, कांग्रेस की 19 सीटों पर जीत दर्ज हुई तो औवेसी की पार्टी अपनी 7 सीटें बचा पाने मंे सफल रही। 2014 में भाजपा को तेलंगाना में पांच सीटें मिली थी। 2018 में उसे मात्र 2 सीटों की जीत पर संतोष करना पड़ा। अब लेकिन भाजपा का प्रभाव राज्य मंे बढ़ा है। गत् नवंबर हुजुराबाद लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव का नतीजा भाजपा के पक्ष में गया। यहां से पार्टी प्रत्याशी की करारी हार ने मुख्यमंत्री राव की बेचैनी बढ़ा डाली है। अब तक के. चन्द्रशेखर राव केंद्र सरकार के खिलाफ खुला मोर्चा खोलने से कतराते आए हैं। संसद में भी टीआरएस कांग्रेस के सांसद विपक्षी दलों संग तालमेल करने से बचते रहते हैं। इस उपचुनाव में हुई हार ने लेकिन समीकरण बदल डाले हैं। मानसून सत्र के दौरान टीआरएस के सांसद जमकर केंद्र सरकार पर हमला बोलते दिख रहे हैं। इतना ही नहीं, स्वयं मुख्यमंत्री राव तीनों कृषि कानूनों को लेकर खासे मुखर तो रहे ही हैं, वे अब एमएसपी व किसानों की अन्य मांगों को लेकर भी लगातार मोदी सरकार और भाजपा पर तीखे प्रहार करने लगे हैं। राव ने इस आंदोलन के दौरान मरे सभी किसानों को तेलंगाना सरकार की तरफ से तीन लाख का मुआवजा देने की घोषणा कर डाली है। साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार से कहा है कि हरेक मृतक किसान के परिवार को केंद्र 25 लाख का मुआवजा दे। जानकारों की माने तो किसानों का मसीहा बन के. चन्द्रशेखर राव राष्ट्रीय राजनीति में अपनी धमाकेदार इन्ट्री कराने के फेर में हैं। यह भी खासी चर्चा है कि राव राज्य की कमान अपने बेटे को सौंप स्वयं 2024 में विपक्षी दलों का चेहरा बनने की हसरत पाले हैं। यदि ऐसा है तो उन्हें पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से कड़ी टक्कर मिलनी तय है।
केसीआर की बढ़ती महत्वाकांक्षा
