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पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह चार नवंबर को अपने मंत्रियों, विधायकों और पंजाब से पार्टी के सांसदों संग दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे। इस धरने के जरिए उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा पंजाब के हितों की अनदेखी करने, पंजाब के हिस्से का जीएसटी न देने और ग्रामीण विकास के लिए केंद्र द्वारा राज्यों को दी जाने वाली धनराशि को रोकने आदि मुद्दों पर देश का ध्यान खींचने का प्रयास किया। इससे पहले उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने का समय मांगा था जिसे राष्ट्रपति भवन ने अस्वीकार कर दिया। इससे आहत अमरिंद्र सिंह धरने पर जा बैठे। उनके इस धरने को मीडिया ने कवर तो किया, लेकिन उसका फोकस धरने के कारणों से कहीं ज्यादा पंजाब कांग्रेस में चल रही रार पर जा टिका। मुख्यमंत्री इससे खासे परेशान बताए जा रहे हैं। इस धरने से पंजाब कांग्रेस के कई बड़े चेहरे ने दूरी बना सीएम की मुसिबतें बढ़ा दी हैं। कांग्रेस के पंजाब से तीनों राज्यसभा सांसद इस धरने में नजर नहीं आए। तीनों सांसद अंबिका सोनी, शमशेर ढिल्लो और प्रताप सिंह बाजवा, अमरिंद्र सिंह से अपनी नाराजगी चलते नहीं आए तो पंजाब प्रदेश के प्रभारी और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत भी धरने में शामिल नहीं हुए। चर्चा जोरों पर है कि नवजोत सिंह सिद्दू की रावत, अमरिंदर मंत्रीमंडल में वापसी का प्रयास कर रहे हैं जिसके चलते अमरिंदर संग उनके रिश्ते तनावपूर्ण हो चले हैं। पार्टी सूत्रों का दावा है कि रावत इसी के चलते धरने से दूर रहे। चर्चा यह भी है कि जल्द ही सिद्दू की वापसी होने जा रही है। यदि उन्हें अमरिंदर मंत्री नहीं बनाते तो आलाकमान उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना सकता है।

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