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देश की शीर्ष जांच एजेंसी सीबीआई इन दिनों बड़े अफसरों के आंतरिक कलह के चलते सुर्खियों में है। एजेंसी प्रमुख आलोक वर्मा और उनके नंबर दो राकेश अस्थाना के बीच वर्चस्व की जंग अब खुलकर सामने आ गई है। अस्थाना को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का करीबी माना जाता है। 2002 में साबरमती एक्सप्रेस में कारसेवकों को जिंदा जलाए जाने के बाद बने विशेष जांच दल के अगुवा अस्थाना ही थे। अस्थाना ने इसे आपराधिक साजिश माना था। वर्तमान में वे कई बड़े मामलों की जांच कर रहे हैं जिनमें विजय माल्या और पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम के बेटे का केस शामिल है। सूत्रों की मानें तो आलोक वर्मा संग अस्थाना की पटरी नहीं जम रही। वर्मा ने अस्थाना की सीबीआई में बतौर विशेष निदेशक नियुक्ति का विरोध किया था। पिछले दिनों केंद्रीय सतर्कता आयोग ने सीबीआई में नियुक्ति के लिए चयनित अफसरों की बाबत एक बैठक बुलाई थी जिसमें एजेंसी के निदेशक को शामिल होना था। आलोक वर्मा विदेश यात्रा पर थे। उन्होंने सीबीसी को सूचित किया कि उनके स्थान पर अस्थाना इस बैठक का हिस्सा नहीं हो सकते क्योंकि, वे स्वयं जांच के घेरे में हैं। इतना ही नहीं सीबीआई प्रमुख ने मुख्य सतर्कता आयुक्त को लिखे पत्र में चिंता जताई है कि संदेहास्पद छवि के अधिकारियों को सीबीआई में लिया जा रहा है। वर्मा के इस कठोर पत्र के बावजूद सीबीसी ने पिछले दिनों कुछेक ऐसे अफसरों की एजेंसी में तैनाती का रास्ता साफ कर दिया जिनकी संदेहास्पद निष्ठा रही है। माना जा रहा है सीबीआई निदेशक पर विशेष निदेशक अस्थाना भारी पड़ रहे हैं, क्योंकि उन्हें शीर्ष स्तर से राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है।

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