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राजनीति से खत्म होता इफ्तार कल्चर

इफ्तार की राजनीति, जो कभी उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, गायब हो गई है। रमजान के महीने के खत्म होने में बस कुछ ही दिन बाकी हैं और अभी तक किसी भी राजनीतिक दल ने इफ्तार का आयोजन नहीं किया है। पिछले तीन वर्षों से कोरोना के चलते इस तरह के आयोजन नहीं हुए। समाजवादी पार्टी अपने पार्टी मुख्यालय में सबसे बड़ी और सबसे अच्छी इफ्तार पार्टी की मेजबानी करने के लिए जानी जाती थी। इसके संस्थापक स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव व्यक्तिगत रूप से मेहमानों से मिलते थे और यह सुनिश्चित करते थे कि प्रत्येक को भरपेट भोजन मिले। मेज पर रखा मेन्यू भी उतना ही भव्य होता था। लेकिन अखिलेश यादव इफ्तार पार्टी की मेजबानी करने से कतरा रहे हैं क्योंकि ऐसा करने से उनके प्रतिद्वंद्वी उन्हें हिंदू विरोधी करार देंगे। पार्टी सूत्रों के अनुसार पार्टी नए विवाद में फंसने के बजाय नगर पालिका चुनावों पर फोकस कर रही है। हालांकि अखिलेश अपने नेताओं और विधायकों द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टियों में शामिल होते रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी सत्ता में होने पर ही इफ्तार पार्टियों की मेजबानी करने के लिए जानी जाती है और मेहमानों की सूची बेहद सीमित होती थी। कांग्रेस ने पहले नियमित रूप से इफ्तार पार्टियों की मेजबानी की थी और दिल्ली के उसके नेताओं ने भी इसमें भाग लेने का प्रयास किया था। मगर हाल के वर्षों में पार्टी ने इस परंपरा को तोड़ दिया है। बीजेपी ने सिर्फ एक बार इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था, जब राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे। अन्य नेताओं ने ऐसे मौकों पर मेजबानी करने से परहेज किया है। उत्तर प्रदेश में इफ्तार पार्टियों की शुरुआत सत्तर के दशक की शुरुआत में तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने की थी। इसके बाद यह एक वार्षिक परंपरा बनी।

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