देश की सत्ता में जब से भाजपा शासित हुई है तब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई चौंकाने वाले फैसले लेते रहे हैं। ऐसा ही निर्णय उन्होंने हाल ही में चार बार के विधायक मोहन चरण माझी को उड़ीसा का नया मुख्यमंत्री बनाकर लिया है। इसे चौंकाना वाला इसलिए माना जा रहा है क्योंकि राजनीतिक गलियारों में दूर-दूर तक माझी का नाम नहीं आ रहा था। ऐसे में इसके पीछे के कारणों को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि मोहन चरण माझी को चुनकर बीजेपी ने एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश की है। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह झारखंड चुनाव और आदिवासी वर्ग को साधना बताया जा रहा है। असल में आदिवासी वर्ग से आने वाले मोहन चरण माझी को पार्टी ने ऐसे समय पर उड़ीसा का मुख्यमंत्री नियुक्त किया है जब पार्टी को लोकसभा चुनाव में अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है। गौरतलब है कि आम चुनाव में साल 2014 के बाद पहली बार बीजेपी बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर पाई और 240 सीटों पर अटक गई। जिस कारण उसकी निर्भरता एनडीए गठबंधन में शामिल दलों पर बढ़ गई है। लोकसभा चुनाव में एनडीए ने झारखंड की 14 सीटों में 9 पर जीत दर्ज की है। ये बीजेपी के लिए बड़ा झटका था क्योंकि एनडीए को 2019 के लोकसभा चुनाव में 12 सीटें हासिल हुई थी। राज्य की अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित सीटों पर बीजेपी की हार हुई है। सबसे चौंकाने वाला परिणाम खूंटी का रहा जहां केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को हार का सामना करना पड़ा। वहीं जेएमएम छोड़कर बीजेपी का दामन दामन थामने वाली शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन की दुमका सीट पर हार गई। चुनाव के ठीक पहले बीजेपी में आईं गीता कोड़ा को भी सिंहभूम सीट पर हार का सामना करना पड़ा। लोहरदगा लोकसभा सीट पर बड़ा उलटफेर कर कांग्रेस के सुखदेव भगत ने बीजेपी के समीर उरांव को पराजित कर दिया। जिससे बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए नेतृत्व के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ गई हैं। नाराजगी का सबसे बड़ा कारण झारखंड के आदिवासी नेता और पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को माना जा रहा है। झारखंड की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल अगले साल जनवरी के पहले हफ्ते में पूरा हो रहा है। ऐसे में इसी साल नवंबर और दिसंबर में चुनाव हो सकता है। माना जा रहा है कि बीजेपी ने नाराजगी दूर करने के लिए मोहन चरण माझी को सीएम चुना है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मोहन माझी जिस रायकला गांव से ताल्लुक रखते हैं वो भी आदिवासी बहुल है। हालांकि पिछले साल के अंत में हुए मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि मोहन यादव को सीएम बनाने से बीजेपी को यूपी में फायदा होगा, ऐसा नहीं हुआ। देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा का यह दांव कितना कारगर होगा।
कितना कारगर होगा भाजपा का दांव
