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भाजपा में मोदी-शाह युग की शुरुआत का एक बड़ा असर अन्य दलों के नेताओं का भाजपा में शामिल होना रहा है। जहां कहीं भी भाजपा कमजोर थी या फिर जिस किसी भी विपक्षी नेता का अपना जनाधार था उसे भाजपा ने पिछले सात सालों के दौरान सम्मान सहित अपने यहां जगह दी। इनमें से कइयों को केंद्र में मंत्री भी बनाया। अब लेकिन बदलते माहौल में भाजपा का इन दल-बदलुओं से मोह कम होता नजर आ रहा है। दल-बदलु भी अब घर वापसी करने का रास्ता तलाशने लगे हैं। मणिपुर में भाजपा ने कांग्रेस से दल-बदल कर आए 16 विधायकों में से 6 का टिकट काट दिया है। ये 6 नेता न घर के रहे न घाट के। कांग्रेस इन्हें वापस लेने को तैयार नहीं है। भाजपा के इस निर्णय ने देश भर में अन्य दलों से भाजपा में गए नेताओं की बैचेनी बढ़ा डाली है। इसका एक बड़ा असर गोवा में देखने को मिला जहां बड़ी संख्या में कांग्रेस का दामन झटक भाजपाई बने नेता अब घर वापसी करने लगे हैं। उत्तराखण्ड में भी 2017 में तत्कालीन हरीश रावत सरकार से विद्रोह कर भाजपा में शामिल हुए नेता अब कांग्रेस की तरफ मुंह करने लगे हैं। धामी सरकार के दो कैबिनेट मंत्री घर वापसी कर भी चुके हैं। झारखण्ड में भी कुछ ऐसा ही माहौल है। यहां एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत 2019 के विधानसभा चुनाव में ठीक पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। भगत की पत्नी लोहरदगा की मेयर हैं। अब भगत वापस कांग्रेसी हो चले हैं। एक अन्य पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप लालमुचू भी वापस कांग्रेस में आ चुके हैं। सत्ता गलियारों में खबर गर्म है कि पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों में यदि भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा तो बड़ी तादात में दल बदलने का खेला शुरू होगा। इस बार इस खेला में बैकफुट पर भाजपा रहेगी। खबर यह भी जोरों पर है कि वर्ष के अंत में होने जा रहे दो राज्यों हिमाचल प्रदेश और गुजरात में सबसे ज्यादा इस खेला का असर देखने को मिलेगा।

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