दिल्ली दरबार में इन दिनों इस बात की खासी चर्चा है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही देश की बड़ी जांच एजेंसियों एवं सुरक्षा बलों में समय रहते शीर्ष पदों पर नियुक्तियां न किए जाने का अघोषित नियम बन चुका है। सीबीआई के निदेशक की सेवानिवृति के तीन माह बाद नया निदेशक पिछले दिनों नियुक्त किया गया। हालांकि परंपरा ऐसे किसी भी पद पर तैनात अधिकारी की सेवानिवृति से पहले ही उसके उत्तराधिकारी को नियुक्ति किए जाने की रही है। ठीक इसी प्रकार सबसे महत्वपूर्ण आतंक निरोधक एजेंसी एनआईए के पद भी खाली चल रहा है। मई 31 को इसके पिछले प्रमुख वाईएस मोदी रिटायर हो चुके हैं। तब से अभी तक सीआरपीएफ के महानिदेशक का इस एजेंसी का कार्यवाहक मुखिया बना काम चलाया जा रहा है। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) के महानिदेशक पद भी रिक्त पड़ा है। दो बरस होने के आए हैं लेकिन नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के मुखिया को अभी तक सरकार नियुक्ति नहीं कर पाई है। इससे पहले बीएसएफ, एनएसजी समेत कई प्रमुख एजेंसियों के पद लंबे अर्से तक रिक्त रखे गए। चर्चा है कि केंद्र सरकार अपने करीबी अफसरों की नियुक्ति करने के चलते लंबे अर्से तक इन पदों को रिक्त रख रही है ताकि उन वरिष्ठ अफसरों के दावों को खारिज किया जा सके जिनका कार्यकाल जल्द समाप्त होने वाला हो। एक बार ऐसे अफसर रिटायर हो जाते हैं तब सरकार द्वारा अपनी पसंद का अफसर नियुक्ति करने की राह आसान हो जाती है। हालांकि पिछले दिनों सीबीआई प्रमुख का पद विवादित छवि के आईपीएस राकेश अस्थाना को दिला पाने में केंद्र सरकार सफल न हो सकी। इस पद की चयन समिति के सदस्य मुख्य न्यायाधीश एन ़वी ़ रमन्ना ने अस्थाना के नाम पर सहमति न देकर सरकार बहादुर के प्लान पर पानी फेर डाला।
बगैर मुखिया शीर्ष पुलिस बल
