[gtranslate]

छोटा राज्य होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बना हुआ है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह प्रदेश होने की वजह से पार्टी के सामने हर हाल में अपनी सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है। वहीं कांग्रेस भाजपा से सत्ता छीनने के लिए दांव आजमा रही है। सारा दारोमदार सामाजिक समीकरणों पर है और दोनों दल इनको साधने में जुट गए हैं। हिमाचल प्रदेश की 68 सदस्यीय विधानसभा में फिलहाल भाजपा सत्ता में है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए भी यह चुनाव काफी अहम हैं क्योंकि पिछली बार भाजपा ने चुनाव प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में लड़ा था, लेकिन वह चुनाव हार गए, जिसकी वजह से जयराम ठाकुर को कमान सौंपी गई थी। लेकिन अब हिमाचल प्रदेश के बड़े नेता जेपी नड्डा राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और हिमाचल प्रदेश के चुनाव की सारी कमान उनके हाथों में ही रहेगी। राज्य के सामाजिक समीकरणों में लगभग आधी आबादी सवर्ण जाति की है। उसमें भी राजपूत वर्ग का बाहुल्य है। लगभग 32 फीसद आबादी राजपूत है, जबकि दूसरे नंबर पर दलित समुदाय हैं, जिसकी आबादी 25 फीसद है। इसके बाद ब्राह्मण 18 फीसद व अन्य पिछड़ा वर्ग 14 फीसद है। राज्य में अनुसूचित जनजाति की आबादी लगभग साढ़े पांच फीसद है। विधानसभा में भी राजपूत समुदाय का दबदबा है। सामान्य वर्ग की 48 सीटों में 33 विधायक इसी वर्ग से आते हैं। इनमें भाजपा के 18, कांग्रेस के 12, दो निर्दलीय और एक माकपा विधायक शामिल है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजपूत समुदाय पर दांव लगाए हुए हैं, लेकिन जीत के समीकरण के लिए दलित और ब्राह्मण समुदाय को साधना बहुत जरूरी है। भाजपा की दिक्कत यह भी है कि ब्राह्मण समुदाय से आने वाले पार्टी के प्रदेश के सबसे बड़े नेता शांता कुमार के तेवर भी नरम-गरम रहते हैं। चूंकि पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा खुद ब्राह्मण हैं, इसलिए पार्टी को इस वर्ग का समर्थन मिलने की काफी उम्मीद है। दूसरी तरफ कांग्रेस भी अपनी प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के भरोसे है। वह भी राजपूत है। कांग्रेस में भी कई महत्वपूर्ण ब्राह्मण नेता हैं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD