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महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे गुट की बगावत के बाद शुरू हुई राजनीतिक हलचल एक बार फिर से बढ़ गई है। शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह शिंदे गुट को मिलने के बाद दोनों खेमे से राजनीतिक बयानबाजी का दौर जारी है। इस बीच चुनाव चिन्ह और नाम को लेकर खत्म हुई लड़ाई के बाद चर्चा है कि यह लड़ाई अब पार्टी की प्रॉपर्टी को लेकर शुरू हो सकती है। चर्चा जोरों पर है कि शिंदे गुट मातोश्री पर भी अपना दावा कर सकता है। वहीं 150 करोड़ के पार्टी फंड को लेकर भी तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि पार्टी फंड भी शिंदे गुट के हाथ में जा सकता है और शिंदे गुट का पलड़ा हर तरफ से भारी नजर आ रहा है। दरअसल उद्धव ठाकरे के साथ वाले सांसद और विधायक शिवसेना के व्हिप से जुड़े हैं। अब देखना है कि अगर शिवसेना कोई व्हिप जारी करती है तो क्या वे इसके खिलाफ जाते हैं, क्योंकि व्हिप के खिलाफ जाने पर पार्टी उन्हें अयोग्य घोषित कर सकती है। अगर ये सांसद-विधायक व्हिप के साथ जाएंगे तो उन्हें सरेंडर करना होगा। गौरतलब है कि शिवसेना का मतलब अब शिंदे या शिंदे का मतलब शिवसेना हो गया है। आयोग के फैसले के बाद अब उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना की बात खत्म हो गई है। पार्टी के दो गुट होने की मान्यता खत्म हो गई है, क्योंकि चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को वास्तविक चुनाव चिन्ह दे दिया है और ठाकरे गुट से 6 दशक पुराना चिन्ह वापस ले लिया गया है। चुनाव आयोग के इस फैसले पर ठाकरे गुट ने कड़ी आपत्ति जताई है। आज से 57 साल पहले यानी वर्ष 1966 में बनी शिवसेना का चुनाव चिन्ह ठाकरे परिवार के हाथ से निकल चुका है। कुल 67 विधायकों में से 40 का समर्थन शिंदे गुट को है। शिंदे गुट के साथ 13 सांसद हैं जबकि ठाकरे गुट के साथ 7 सांसद हैं।

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