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कई राज्यों में हालिया संपन्न उपचुनाव के नतीजों का यूं तो उत्तराखण्ड से कुछ लेना-देना नहीं लेकिन पड़ोसी पर्वर्तीय राज्य हिमाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की सभी तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर करारी हार ने वहां के सीएम जयराम ठाकुर की कुर्सी को तो डांवाडोल कर ही डाला है, खबर है कि इन नतीजों ने उत्तराखण्ड के सीएम पुष्कर सिंह धामी को भी खासा चिंतित कर दिया है। गौरतलब है कि दोनों पहाड़ी राज्यों में चुनावी समीकरण एक समान हैं। दोनों राज्यों की आर्थिकी भी एक जैसी है। दोनों ही राज्य हर पांच बरस में सरकार बदलने के लिए जाने जाते हैं। दोनों ही राज्यों में भाजपा ने डबल इंजन की सरकार का दांव चल सरकार बनाई थी। धामी और जयराम ठाकुर की राजनीतिक समस्याएं भी एक समान हैं। हिमाचल में चुनाव वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धुमल के चहरे पर लड़ा गया था लेकिन अपनी सीट हारने के चलते वे सीएम नहीं बन पाए। जयराम की ताजपोशी न धूमल को सुहाई न ही अन्य वरिष्ठ भाजपाइयों को। ठीक ऐसे ही धामी का सीधे सीएम पद पर ऐलीवेशन उत्तराखण्ड भाजपा की दिग्गज पचा नहीं पा रहे हैं। राज्य में भितरघात की परंपरा पुरानी है। 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खण्डूड़ी इसी भितरघात के शिकार हुए थे। अब धामी पर भी यही खतरा मंडरा रहा है। वे राज्य की खटीमा विधानसभा से दो बार के विधायक जरूर हैं लेकिन हार-जीत का अंतर पिछले चुनाव में मामूली रहा था। खबर है कि धामी इस के चलते दो सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं। खटीमा के अलावा उनकी नजर अपने गृह क्षेत्र की पहाड़ी सीट पर भी है लेकिन पार्टी के दिग्गज नेता ऐसा न होने देने की कसम खा चुके हैं। धामी को खटीमा में कांग्रेस से ज्यादा भितरघात की आशंका सता रही है। खबर जोरों पर है कि अपने प्रिय शिष्य पर मंडराता संकट देख महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य में अपनी सक्रियता बढ़ाने का मन बना लिया है। गत् सप्ताह कोश्यारी महाराष्ट्र से कोसों दूर उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र में घूमते नजर भी आए।

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