कभी देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी होने और ज्यादातर प्रदेशों में मजबूत संगठन वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) आज अपने अस्तित्व को बचाने का संघर्ष करती नजर आ रही है। सीपीआई (एम) तीन राज्यों में विशेषकर मजबूत राजनीतिक ताकत बन आजादी बाद उभरी थी। इन तीनों ही राज्यों-केरल, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में वह कई दफा सत्ता में रही। पश्चिम बंगाल में 1977 से 2000 तक लगातार उसकी सरकार बनी। 23 बरस, 127 दिन तक सत्ता में रहने का यह रिकॉर्ड और किसी पार्टी का अभी तक किसी भी राज्य में नहीं बना है। त्रिपुरा में भी 1998 से 2018 तक पार्टी एकछत्र बीस बरस तक सत्ता में काबिज रही। अब लेकिन हालात पूरी तरह बदल गए हैं। वर्तमान में केवल एक राज्य केरल में पार्टी की सरकार है। तमिलनाडु में वह डीएमके गठबंधन का हिस्सा होने चलते सरकार का हिस्सा जरूर है लेकिन यह हिस्सेदारी विपक्षी एकता को बनाए रखने चलते उसे दी गई है। अपने कमजोर होते जनाधार से चिंतित सीपीआई (एम) का आला नेतृत्व इन दिनों आत्मचिंतन और आत्ममंथन में डूबा बताया जा रहा है। खबर है कि पार्टी अपनी शीर्ष कमेटियों का पुनर्गठन करने और उसके सदस्यों की संख्या में भारी कटौती करने का निर्णय ले चुकी है। सीपीआई (एम) की सबसे ताकतवर कमेटी ‘पोलित ब्यूरो’ में वर्तमान में 17 सदस्य हैं। इसी प्रकार उसकी राष्ट्रीय कार्यकारणी ‘सेंट्रल कमेटी’ में 95 सदस्य होते हैं। सूत्रों की मानें तो इन दोनों कमेटियों की सदस्य संख्या को घटाया जाना तय हो चुका है। अब ऐसे राज्यों, जहां पार्टी का जनाधार लगातार सिकुड़ा है, का प्रतिनिधित्व इन कमेटियों में कम करा जा रहा है। साथ ही पार्टी 75 बरस की आयु पार कर चुके अपने ‘कॉमरेडों’ को रिटायर कर युवा चेहरों को आगे करने की रणनीति भी तैयार कर चुकी है। जानकारों की मानें तो अप्रैल माह में होने जा रहे पार्टी के वार्षिक अधिवेशन में इन निर्णयों पर मोहर लगाई जा सकती है।
आत्ममंथन की तरफ सीपीआई (एम)
