मौजूदा समय में कांग्रेस के लिए राजनीतिक दृष्टि से कई संदेश आ रहे हैं। पहला तो यह कि विपक्ष ने पूर्व भाजपा नेता और इस समय तृणमूल कांग्रेस के नेता यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुन लिया है। दूसरा शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे और उनके साथियों द्वारा उद्धव सरकार से बगावत करने के बाद महाराष्ट्र सरकार पर संकट गहरा गया है वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के विरोध में भले ही कांग्रेस नेता सड़कों पर हैं, लेकिन राहुल गांधी के समर्थन में प्रमुख विपक्षी दल खुलकर सामने नहीं आए हैं, अगर इन तीनों घटनाक्रमों को देखा जाय तो भविष्य की राजनीति में इसका सबसे ज्यादा असर कांग्रेस पर पड़ने वाला है। ऐसे में कहा जा रहा है कि विपक्षी दलों में भी कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई है। दरअसल देश के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन में कांग्रेस सीधे तौर पर मुख्य भूमिका में नहीं है। वह बैकफुट से ममता बनर्जी द्वारा प्रस्तावित यशवंत सिन्हा का समर्थन कर रही है। राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार चुनने की कवायद में ऐसा पहली बार है कि कांग्रेस मुख्य भूमिका में नजर नहीं आ रही है और विपक्ष की ओर से सारी कवायद ममता बनर्जी और शरद पवार की ओर से ही दिखी है। जबकि अब तक ऐसा रहा है कि कांग्रेस अगर विपक्ष में भी रही है तो उम्मीदवार चयन में उसकी अहम भूमिका रही है। लेकिन इस बार कांग्रेस शुरू से ही ममता बनर्जी के साथ खड़ी नजर आई और गांधी परिवार ने जयराम रमेश, रणदीप सुरजेवाला और अन्य नेताओं को भेजकर ममता के साथ चलने का संदेश दे दिया था। इसी तरह राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ जारी है उसके विरोध में कांग्रेस देश के अलग-अलग राज्यों में प्रदर्शन भी कर रही है, लेकिन कोई भी विपक्ष का बड़ा नेता और उसकी पार्टी खुलकर उनके समर्थन में खड़ी होती नजर नहीं आई। कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव में जिस तरह विपक्ष के नेतृत्व की भूमिका ममता बनर्जी ने निभाई है, उससे साफ है कि वह 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भी ऐसा ही कुछ करना चाहेगी।
अलग-थलग कांग्रेस
