पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों बाद कांग्रेस के भीतर एक बार फिर बगावत के स्वर बुलंद होने लगे हैं। केरल और असम में जी-तोड़ मेहनत के बाद भी राहुल गांधी पार्टी की परफाॅरमेंस सुधार पाने में स्पष्ट रूप से विफल रहे हैं। पार्टी सूत्रों का दावा है कि इन नतीजों के बाद गांधी परिवार की पार्टी पर पकड़ ज्यादा कमजोर हो चली है। कुछ अर्सा पहले बजरिए मीडिया पार्टी संगठन में आमूल-चूल परिवर्तन की मांग उठाने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने एक बार फिर से नए पूर्णकालिक अध्यक्ष को चुने जाने की मांग उठानी शुरू कर दी है। इतना ही नहीं प्रदेश स्तर के बड़े नेता अब अलग क्षेत्रीय दल बनाने पर विचार करते सुने जा रहे हैं। खबर गर्म है कि हरियाणा से इसकी शुरुआत हो सकती है। जहां क्षत्रप भूपेन्दर सिंह हुड्डा जल्द ही अलग पार्टी बनाने का ऐलान कर सकते हैं। सूत्रों का दावा है कि हुड्डा और गांधी परिवार के मध्य अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो चली है कि उसे अब पाटा जाना लगभग असंभव हो चुका है। अपने सांसद पुत्र दीपेन्दर हुड्डा को राजनीति में स्थापित करने की मंशा चलते ही भूपेन्दर हुड्डा ने दुष्यंत चैटाला संग गठबंधन नहीं होने दिया। नतीजा भाजपा राज्य में दोबारा सत्ताशीन हो गई। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो चैटाला कांग्रेस संग गठबंधन की सरकार बनाने के लिए तैयार थे लेकिन राज्य की राजनीति में अपने पुत्र को दुष्यंत चैटाला से आगे रखने की मंशा चलते भूपेन्दर हुड्डा ने ऐसा होने नहीं दिया। गांधी परिवार की खुली अवज्ञा करने वालों में पंजाब के सीएम अमरिन्द सिंह भी पीछे नहीं हैं। केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशों के विपरीत जा उन्होंने नवजोत सिंह सिद्दू को न तो अपने मंत्रिमंडल में स्थान दिया, न ही प्रदेश संगठन का उन्हें अध्यक्ष बनने दिया है। केंद्रीय प्रभारी हरीश रावत तमाम प्रयासों बाद भी अमरिंदर सिंह और सिद्दू को एक करने में इसके चलते कामयाब नहीं हो पाए हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि कभी गांधी परिवार के अति विश्वस्त रहे राजस्थान के सीएम गहलोत, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल और एमपी के पूर्व सीएम कमलनाथ भी अब केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशों को तरजीह नहीं दे रहे हैं।
कमजोर पड़ता कांग्रेस आलाकमान
