दिल्ली के सत्ता गलियारों में चल रही कानाफूसी इशारा कर रही है कि महाराष्ट्र में महाविकास उधाड़ी गठबंधन में तनाव बढ़ने लगा है। हालात इतने खराब बताए जा रहे हैं कि सरकार के कभी भी गिरने की आशंका प्रबल हो उठी है। इस तनाव के पीछे शिवसेना और कांग्रेस का कई मुद्दों पर एक-दूसरे से सहमत होना नहीं है। दोनों पार्टनर्स की लड़ाई का फायदा तीसरे पार्टनर शरद पवार को मिलने की चर्चा भी खासी गर्म है। दरअसल, शिवसेना केवल महाराष्ट्र तक सिमटा क्षेत्रीय दल है। उसकी राजनीति क्षेत्रीयवाद और उग्र हिंदुत्व के सहारे चलती आई है। दूसरी तरफ कांग्रेस एक बड़ा राष्ट्रीय दल है। अपनी राजनीति पूरे देश में बहुत संभल-संभल कर करना उसकी मजबूरी है। ऐसे में उद्धव ठाकरे सरकार से औरंगाबाद शहर का नाम बदल संभाजीनगर कर कांग्रेस को नाराज करने का काम कर डाला है। सेक्युलर राजनीति का पाठ पढ़ाने वाली कांग्रेस उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा मुस्लिम शहरों के नाम बदलने का कड़ा विरोध करती आई है। ऐसे में उसके सहयोग से बनी महाराष्ट्र सरकार का यह फैसला कांग्रेस के लिए स्वीकारना संभव नहीं है। इतना ही नहीं उद्धव ठाकरे ने कर्नाटक के मराठी बाहुल्य इलाकों को महाराष्ट्र हिस्सा बनाने की मांग उठा एक नया बवाल कांग्रेस के लिए खड़ा कर दिया है। पार्टी सूत्रों की मानें तो कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं को उद्धव ठाकरे के इस बयान ने बौखला दिया है। इन दोनों पार्टनर्स की लड़ाई का फायदा उठाते हुए तीसरे पार्टनर एनसीपी की पौ बारह हो रही है। महाराष्ट्र सरकार में उसका दबदबा बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस के सूत्रों की मानें तो पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस गठबंधन से बाहर आने का मन बना चुके हैं। यदि महाराष्ट्र के बड़े नेताओं ने उनकी सुनी तो उद्धव सरकार का गिरना तय बताया जा रहा है।
कांग्रेस छोड़ सकती है उद्धव सरकार
