देश की ग्रांड ओल्ड पार्टी कांग्रेस एक बार फिर से ‘एकला चलो’ नीति की तरफ बढ़ रही है। गौरतलब है कि राहुल गांधी ने पार्टी की कमान संभालने के साथ ही बूथ स्तर तक पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए गठबंधन के बजाए ‘एकला चलो’ पर जोर दिया था। बाद में पार्टी की लगातार हार पर राहुल ने 2020 में पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे डाला जिसके चलते एक बार फिर से पार्टी की कमान सोनिया गांधी के हाथों में आ गई। गठबंधन राजनीति की सोनिया गांधी पैरोकार रही हैं। 2004 में उनके ही प्रयासों से यूपीए गठबंधन बना जिसने पूरे 10 बरस तक केंद्र की सत्ता में राज किया। अब लेकिन राहुल और प्रियंका गांधी ‘एकला चलो’ के अपने सिद्धांत पर दोबारा कांग्रेस को ले जाते नजर आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में इसी नीति के चलते पार्टी ने सभी 403 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। बिहार में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। बिहार विधान परिषद् के लिए राजद से गठबंधन के बजाए राहुल-प्रियंका ने सभी 24 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करने का फैसला लिया है। जानकारों की मानें तो राजद सुप्रीमो लालू यादव कांग्रेस संग गठबंधन के पक्ष में थे। वे चाह रहे थे कि कांग्रेस के लिए दो सीटें छोड़ दी जाएं लेकिन तेजस्वी यादव इसके लिए तैयार नहीं हुए। तेजस्वी कांग्रेस से कई कारणों के चलते बेहद खफा हैं। खासकर कन्हैया कुमार की कांग्रेस में इन्ट्री बाद तेजस्वी पूरी तरह कांग्रेस विरोधी रुख अपना चुके हैं। दरअसल राज्य की राजनीति में कन्हैया कुमार तेजस्वी के प्रतिद्वंद्वी बन उभरे हैं जिसके चलते उनकी कांग्रेस में इन्ट्री तेजस्वी पचा नहीं पा रहे हैं। पटना में इन दिनों खबर गर्म है कि राहुल गांधी प्रदेश कांग्रेस की कमान कन्हैया कुमार के हवाले कर राज्य में पार्टी को अपने पैरों में खड़ा करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। खबर यह भी जोरों पर है कि आने वाले समय में कई अन्य राज्यों में कांग्रेस ऐसा ही करने जा रही है।