पीएम मोदी के मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़ से एक और मंत्री कौन होगा? छत्तीसगढ़ के सियासी गलियारे में यह बड़ा सवाल है। इस पर भाजपा ही नहीं, बल्कि दूसरे दल के नेता-कार्यकर्ता, ब्यूरोक्रेसी और समाज के लोगों में चर्चा छिड़ी हुई है। इन चर्चाओं ने भाजपा को धर्मसंकट में डाल दिया है। कांग्रेस ने ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का जो दांव खेला है, उससे भाजपा को ओबीसी वर्ग से मंत्री बनाने की मजबूरी है। साथ ही, एससी और सामान्य वर्ग को साधकर रखने का दबाव भी है। छत्तीसगढ़ में वर्तमान में जो राजनीतिक हालात हैं, उसमें काफी उथल-पुथल की स्थिति बनी हुई है। आरक्षण के संबंध में हाईकोर्ट के फैसले के बाद फिलहाल कोई आरक्षण रोस्टर लागू नहीं है। राज्य सरकार की ओर से एसटी, एससी, ओबीसी और आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को मिलाकर 76 प्रतिशत आरक्षण देने का विधेयक लाया गया, वह सर्वसम्मति से पारित होने के बाद भी लागू नहीं हो पाया है। फिलहाल राज्यपाल अनुसुइया उइके ने विधेयक पर दस्तखत नहीं किए हैं। आरक्षण की व्यवस्था में जो असमंजस की स्थिति बनी हुई है, उससे आदिवासी समाज सरकार से नाराज है। हालांकि ओबीसी समाज राज्य सरकार की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है, क्योंकि उन्हें 27 प्रतिशत आरक्षण मिलने की उम्मीद है। राज्यपाल के फैसले का असर सीधे तौर पर भाजपा पर पड़ेगा। ऐसे में भाजपा के सामने ओबीसी वर्ग को साधने की बड़ी चुनौती है। केंद्र में मंत्रिमंडल के विस्तार और फेरबदल के नजरिये से देखें तो यहां से किसी ओबीसी वर्ग के मंत्री को शामिल करने के लिए दबाव बनता दिख रहा है। फिलहाल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल ओबीसी वर्ग से हैं। ओबीसी समाज में साहू और कुर्मी की संख्या सबसे अधिक है। सीएम भूपेश बघेल ने क्वांटीफायेबल डाटा आयोग की रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि यहां ओबीसी की संख्या 42 प्रतिशत हो गई है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से ओबीसी वर्ग को साधने के लिए भाजपा को एक और स्टैंड लेना पड़ सकता है। ऐसे में दुर्ग सांसद विजय बघेल का नाम प्रमुख रूप से उभर रहा है।
धर्मसंकट में छत्तीसगढ़ भाजपा
