झारखण्ड में मिली करारी हार का सबसे बड़ा असर बिहार में जदयू-भाजपा गठबंधन पर पड़ता नजर आ रहा है। रणनीति के चतुर खिलाड़ी नीतीश कुमार की ओर से पवन वर्मा और प्रशांत किशोर को आगे कर नागरिकता संशोधन कानून का विरोध एक सोची-समझी रणनीति के तहत कराया गया प्रतीत होता है।
यदि झारखण्ड में भाजपा दोबारा सरकार बना लेती तो इस वर्ष के अंत में होने जा रहे बिहार विधानसभा चुनाव में वह अधिक सीटों पर दावेदारी कर सकती थी। अब लेकिन पासा पलट गया है।
खबर है कि नीतीश कुमार 120 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। भाजपा को कम से कम 20 सीटें रामविलास पासवान की लोजपा को देनी होंगी। बची केवल 103 सीटें। खबर यह भी है कि प्रदेश भाजपा का एक खेमा सुशील मोदी से नाराज चल रहा है।
इस खेमे का मानना है कि मोदी-नीतीश के दबाव में रहते हैं। यह खेमा इस बार किसी भी सूरत में कम सीटों पर लड़ने को तैयार नहीं। इस खेमे के नेताओं का मानना है कि नीतीश भरोसेमंद नहीं है। जरूरत पड़ने पर वह एक बार फिर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भाजपा का दामन छोड़ सकते हैं।