महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता अजित पवार ने कुछ बातें ऐसी कह डाली हैं जिनके चलते सवाल उठ रहे हैं कि कहीं भीतरखाने चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार के मध्य कुछ खिचड़ी तो नहीं पक रही? इस आशंका को दो बातों ने बल देने का काम किया है। पहली बात उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान ‘बटेंगे तो कटेंगे’ का अजित द्वारा खुला विरोध किया जाना है। जूनियर पवार ने इस नारे को सिरे से खारिज कर महायुति गठबंधन भीतर बेचैनी पैदा करने का काम किया। अभी यह बेचैनी शांत भी नहीं हुई थी कि अजित दादा ने एक ऐसा रहस्योद्घाटन कर डाला जिसने भाजपा नेतृत्व को खासा असहज और शर्मिंदा करने का काम कर दिया है। बकौल अजीत 2019 में जब चुनाव बाद सरकार गठन में गतिविरोध आया था तब उन्होंने एनसीपी के विधायकों को चाचा शरद पवार के कहने पर ही विद्रोह के लिए तैयार किया था और उनकी रजामंदी से ही भाजपा संग हाथ मिलाया था। यहां तक तो ठीक था लेकिन अजित पवार यहीं पर नहीं रूके। उन्होंने यह भी सार्वजनिक कर दिया कि तब जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने में उद्योगपति गौतम अडानी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके इस बयान को कांग्रेस ने हाथों-हाथ लेते हुए भाजपा पर आरोपों की झड़ी लगा डाली है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का कहना है कि धारावी स्थित एक लाख करोड़ मूल्य की जमीन इसी डील के चलते अडानी को कौड़ियों के भाव दी गई है। शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने तो सरकार बनने की स्थिति में यह जमीन वापस लिए जाने तक का ऐलान कर डाला है। महाराष्ट्र की राजनीति में अब कहा-सुना जा रहा है कि अजित पवार ने अडानी का नाम लेकर जानबूझकर भाजपा को परेशानी में डाला है। अफवाहों का बाजार गर्म है कि चुनाव नतीजों बाद जूनियर पवार जरूरत पड़ने पर महायुति गठबंधन छोड़ महा विकास अघाड़ी गठबंधन में शामिल हो सकते हैं।