उत्तराखण्ड़ में 2022 की शुरूआत में विधानसभा चुनाव होने तय हैं। प्रचंड बहुमत के साथ 2017 में सत्ता में आई भाजपा सरकार के नाम बीते चार बरस कुछ खास उपल्ब्धियां न होने और राज्य के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की कार्यशैली से नाराज पार्टी विधायकों की बेचैनी अब चरम पर पहुंच चुकी है। सीएम त्रिवेंद्र को दिल्ली सरकार का वरदहस्त होने के चलते असंतुष्ट प्रदेश नेताओं की दाल गल नहीं रही है। पिछले दिनों पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और विधायक बिशन सिंह चुफाल के नेतृत्व में कुछ विधायकों ने पार्टी आलाकमान तक अपनी नाराजगी पहुंचाई जरूर लेकिन सीएम की कुर्सी वे हिला पाने में विफल रहे। पार्टी सूत्रों की मानें तो ऐसे विधायकों ने प्रदेश भाजपा के एक बड़े नेता की शह पर दिल्ली दरबार से गुहार लगाने का साहस किया था। इन बड़े नेताओं को पार्टी आलाकमान के रोष का शिकार होना पड़ा और विधायकों को भी केंद्रीय नेतृत्व से कुछ हासिल नहीं हुआ। अब एक बार फिर से ऐसे असंतुष्ट नेता अपने मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए नई रणनीति बनाने में जुटे बताए जा रहे हैं। पार्टी सूत्रों का दावा है कि आपसी मतभेद भुलाकर प्रदेश भाजपा के दो बड़े नेता इस मुहिम के पीछे हैं। इन नेताओं के द्वारा भाजपा आलाकमान को समझाया जा रहा है कि त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व में यदि 2022 में पार्टी चुनावों में उतरती है तो उसे करारी हार का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे नेताओं का कहना है कि एन्टी इन्कम्बंसी फैक्टर से बचने के लिए त्रिवेंद्र के स्थान पर नए चेहरे को सामने लाना पार्टी के हित में होगा। सूत्रों का दावा है कि प्रदेश इकाई के ये दोनों बड़े नेता वर्तमान में विधायक नहीं हैं। ऐसे में सल्ट विधानसभा सीट के विधायक की मृत्यु से खाली हुई सीट पर इन दोनों नेताओं की निगाहें टिकी हैं। यदि इनमें से किसी की लाटरी खुलती है तो इस सीट से उपचुनाव लड़ विधानसभा पहुंचा जा सकता है।
त्रिवेंद्र के नेतृत्व में चुनाव में नहीं जाना चाहते भाजपाई
