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दिल्ली में आम आदमी पार्टी की प्रचंड जीत की गूंज बिहार में सबसे ज्यादा महसूसी जा रही है। राज्य में साल के अंत में चुनाव होने हैं। नीतीश कुमार ने भाजपा के पक्ष में दिल्ली चुनाव के दौरान जमकर प्रचार किया। वे भारी मुगालते में थे कि पूर्वांचल का वोटर उनके कहने पर मान लेगा कि केजरीवाल सरकार दिल्ली में फेल रही है।
जनता लेकिन अब समझदार हो गई है। आप सरकार के कामकाज से संतुष्ट वोटर ने नीतीश बाबू को आयना दिखा डाला। खबर है कि जद(यू) में भाजपा संग गठजोड़ को लेकर असंतोष बढ़ने लगा है। पार्टी नेताओं का मानना है कि इस बार मुस्लिम मतदाता नीतीश कुमार के नाम पर वोट नहीं देने वाला। यदि ऐसा होता है तो सोशल इंजीनियरिंग के मास्टर खिलाड़ी नीतीश कुमार का महत्व भाजपा के लिए समाप्त हो जाएगा। जानकारों का दावा है कि भाजपा नेतृत्व बिहार में पार्टी की कमान केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को सौंप चुनाव से पहले राज्य में हिंदू-मुस्लिम विभाजक रेखा को गहराने का मन बना चुका है। यदि ये खबर सच है तो नीतीश के सामने अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बनाए रखने का भारी धर्म संकट आन खड़ा होगा। कुल मिलाकर राजनीति के शातिर खिलाड़ी नीतीश कुमार इस बार अपने ही बिछाए जाल में फंसते दिखाई दे रहे हैं।

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