जम्मू-कश्मीर में अब विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी गई है। इनमें से 43 सीटें जम्मू में होंगी, जबकि 47 सीटें कश्मीर में होंगी। अभी तक 36 सीटें जम्मू में थी और कश्मीर में 46 सीटें थी। इन 90 सीटों में से 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने का भी प्रावधान किया गया है। जबकि 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव है। इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर की नई विधानसभा में लद्दाख का प्रतिनिधित्व नहीं होगा। क्योंकि वह अब केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है। ऐसे में कहा जा रहा है कि आगामी चुनाव बदली हुई परिस्थितियों में होंगे। ऐसी स्थिति में गुलाम नबी आजाद किंग मेकर की भूमिका निभा सकते हैं। दरअसल, आजाद की खासियत यह है कि वह जम्मू-कश्मीर के उन गिने-चुने नेताओं में हैं, जिनकी घाटी से लेकर दिल्ली तक स्वीकार्यता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हें पसंद करते हैं। तो नेशनल कांफ्रेस के नेता फारूक अब्दुल्ला भी कांग्रेस छोड़ने के बाद उनका स्वागत करने को तैयार दिख रहे हैं। इसके अलावा अलगाव विरोधी मुस्लिमों के भी वह पसंद रहे हैं और हिंदू समुदाय भी उन्हें वोट देता है। ऐसे में आजाद चुनाव बाद किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं। खास तौर पर उस समय जब किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिले। गुलाम नबी आजाद ने ऐसे समय में कांग्रेस छोड़कर पार्टी बनाने का ऐलान किया है, जब जम्मू-कश्मीर में न केवल विधानसभा चुनावों की आहट है। बल्कि चुनावों में करीब 25 लाख नए वोटर जुड़ने की उम्मीद है। ऐसे में गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस से अलग हो, नई पार्टी बना चुनाव लड़ना कांग्रेस के लिए कश्मीर में नया संकट बन चुका है।