अखिलेश यादव इन दिनों कई बड़े नेताओं के बागवती रुख से जूझ रहे हैं। इस बीच विधानसभा में जिस तरह सपा अलग-थलग पड़ती दिखी उससे राज्यसभा चुनाव में भी पार्टी की राह आसान नहीं मानी जा रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव पर अपनों का दबाव काफी बढ़ चुका है और यदि समय रहते उन्होंने बागी सुरों को शांत नहीं किया तो आने वाले समय में मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। दरअसल बीते हफ्ते उत्तर प्रदेश सदन में राज्यपाल के अभिभाषण के साथ विधानसभा के बजट सत्र की शुरुआत हुई। सत्र का पहला ही दिन बेहद हंगामेदार रहा और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को भारी शोर-शराबे के बीच अभिभाषण पढ़ना पड़ा। समाजवादी पार्टी के विधायकों ने हाथों में बैनर पोस्टर लेकर जमकर नारेबाजी की। हालांकि, महंगाई, कानून-व्यवस्था और आवारा पशु जैसे मुद्दे को लेकर जनता के बीच नंबर बढ़ाने की कोशिश में किया गया हंगामा अखिलेश यादव के लिए ही उलटा पड़ता दिखा। सरकार के खिलाफ इस प्रदर्शन में अखिलेश काफी अलग-थलग पड़ गए। विधानसभा में एक तरफ जहां सपा के विधायक हंगामा कर रहे थे तो गठबंधन के कई साथी शांत बैठे रहे। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के विधायक चुपचाप अभिभाषण सुनते रहे तो विधानसभा की कार्यवाही के बाद पार्टी प्रमुख ओपी राजभर ने सपा के हंगामे का खुलकर विरोध किया। उन्होंने इसे गलत परंपरा बताते हुए सपा प्रमुख के फैसले पर सवाल उठा दिए। वहीं, आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव भी बेहद खामोशी से बैठकर इस हंगामे से खुद को पूरी तरह अलग रखा।