देश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा ऐसी एकमात्र सियासी पार्टी है जिसने 2019 में अपने नेताओं के चुनाव लड़ने के लिये उम्र सीमा का फॉर्मूला तय करते हुए इसे अमली जामा पहनाना शुरू किया था। लेकिन क्या भारतीय जनता पार्टी अगले लोकसभा चुनाव में टिकट देने के लिए 75 साल की अधिकतम उम्र सीमा के अघोषित नियम पर अमल करेगी या इसमें कुछ लचीलापन लाया जाएगा? भाजपा के 70 साल से ज्यादा उम्र के कई बड़े नेता इस नियम पर नजर रखे हुए हैं। उनको लग रहा है कि अगर इस नियम पर अमल हुआ तो उनकी टिकट कट जाएगी। इस उम्र के कई नेता अभी से प्रतिस्पर्धा करने में लग गए हैं। छत्तीसगढ़ में पार्टी के दिग्गज आदिवासी नेता नंद कुमार साय के पार्टी छोड़ने का एक बड़ा कारण यह भी है कि उनकी उम्र 77 साल हो गई है और उनको लग रहा है कि अगले चुनाव में लड़ने का मौका नहीं मिलेगा। पार्टी परिवार के किसी सदस्य को टिकट देगी इसमें भी संशय है। आखिर कर्नाटक में केएस ईश्वरप्पा की टिकट कटी तो उनके लाख चाहने के बाद भी उनके बेटे को भाजपा ने टिकट नहीं दिया। जिससे पार्टी के कई उम्रदराज नेता परेशान हैं। उनको लग रहा है कि सबकी किस्मत गुलाबचंद कटारिया जैसी नहीं हो सकती है कि 75 साल की उम्र सीमा के दायरे में आने से पहले ही राज्यपाल बना दिए जाएं। सबकी किस्मत बीएस येदियुरप्पा जैसी भी नहीं हो सकती है कि अपनी पारंपरिक विधानसभा सीट पर बेटे को टिकट मिल जाए और दूसरा बेटा सांसद बना रहे। भाजपा के 303 लोकसभा सांसदों की सूची देखें तो उसमें कई चेहरे हैं, जो अगले साल चुनाव तक 70 साल से ऊपर के होंगे। बिहार में रमा देवी 75 साल की हो गई हैं तो राधामोहन सिंह अगले साल 75 के हो जाएंगे। गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे भी 70 साल से ऊपर के हैं। झारखंड में पशुपति नाथ सिंह से लेकर उत्तर प्रदेश में रिटायर जनरल वीके सिंह सब 75 की आयु में पहुंचे हुए हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि अगर पार्टी इन नेताओं का टिकट काटेगी तो उसके लिए इन नेताओं का विकल्प खोजना आसान नहीं होगा।