देश की सर्वोच्च पंचायत यानी संसद में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के बहुमत का असर सरकार के कामकाज पर नजर रखने वाली संसदीय समितियों पर दिखने लगा है। सबसे महत्वपूर्ण मानी जाने वाली समिति पीएसी यानी लोक लेखा समिति का अध्यक्ष परंपरा अनुसार विपक्षी दल का होता है। यह समिति सरकार द्वारा खर्च किए गए धन का आडिट करती है। इस समिति के पास किसी भी सरकारी परियोजना की जांच करने का अधिकार भी होता है।
इसकी रिपोर्ट पर संसद में बहस होती है और सरकार की जवाबदेही तय की जाती है। वर्तमान संसद में कांग्रेस के लोकसभा में नेता अधीर रंजन चैधरी को इसका अध्यक्ष मनोनीत किया गया है। बेचारे अधीरे बाबू लेकिन चाह कर भी कुछ खास कर नहीं पायेंगे क्योंकि 20 सदस्यीय इस कमेटी में एनडीए के समर्थक सांसदों का बोलबाला है। कमेटी में लोकसभा के 15 और राज्यसभा से 5 सांसद हैं जिनमें से अधीर रंजन चैधरी के अलावा अन्य 16 सांसद एनडीए से हैं। 12 सांसद भाजपा के, एक अन्ना द्रमुक का, एक जद(यू) का तो एक बीजू जनता दल का है।
यानी 15 सांसद सरकारी पक्ष के हैं। ऐसे में यदि किसी भी मामले में सरकार विरोधी बात सामने आती है तो चाह कर भी अधीर रंजन केंद्र सरकार के खिलाफ रिपोर्ट नहीं बना पायेंगे। जानकारों की माने तो अधीर बाबू को खासी चिंता सता रही है कि कैसे वे एनडीए सांसदो से भरी समिति को चला पायेंगे।