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उत्तर प्रदेश भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चर्चाओं का बाजार गरमा गया है। राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार पार्टी किसी दलित नेता को यह जिम्मेदारी सौंप सकती है जिससे वह समाजवादी पार्टी के ‘पीडीए’ यानी (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नैरेटिव को मात दे सके और बसपा के कमजोर पड़े वोट बैंक को अपनी ओर खींच सके। चर्चा जोरों पर है कि भाजपा किसी ऐसे दलित नेता को मौका दे सकती है जो आरएसएस और भाजपा के पुराने कार्यकर्ता के तौर पर पार्टी के विचारधारा से मेल खाता हो और उसे मजबूत राजनीतिक आधार प्राप्त हो। ऐसे में तीन प्रमुख नाम सामने आ रहे हैं विद्या सागर सोनकर, रामशंकर कठेरिया और राम सकल का। कहा-सुना जा रहा है कि इनमें से ही किसी एक को इस महत्वपूर्ण पद का भार सौंपा जा सकता है।

भाजपा ने अब तक उत्तर प्रदेश में किसी दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया था। ऐसे में अगर पार्टी इस बार दलित समाज से किसी नेता को यह जिम्मेदारी देती है तो यह एक ऐतिहासिक कदम होगा। इस कदम से न केवल भाजपा को अपने दलित वोट बैंक को मजबूत करने में मदद मिलेगी, बल्कि सपा द्वारा पिछड़ा और दलित समाज के समर्थन के लिए चलाए जा रहे अभियान को भी कड़ी टक्कर मिलेगी। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कुछ समय पहले ही भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 70 नए जिला और महानगर अध्यक्षों की नियुक्ति की थी जिनमें से 39 सवर्ण जातियों के थे। इस फैसले के बाद सपा और बसपा ने आरोप लगाया था कि भाजपा ने पिछड़े और दलितों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। इससे पहले भाजपा ने जाट समुदाय से आने वाले भूपेंद्र चैधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। लेकिन इस बार पार्टी का नेतृत्व चैंकाने वाला निर्णय ले सकता है और दलित समाज से किसी प्रभावशाली नेता को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है।

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