केंद्र सरकार में कृषि मंत्री और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की गत् दिनों मध्य प्रदेश में बढ़ती उपस्थिति और सघन गतिविधियों के कई मायने निकाले जा रहे हैं। विश्लेषक कहते हैं कि चैहान केवल सरकारी काम नहीं, बल्कि राजनीतिक गतिविधियों में भी शामिल हो रहे हैं। उनकी यह सक्रियता राज्य की राजनीति में नई हलचल के सतह ही पार्टी के भीतर भी कई सवाल खड़े कर रही है। सीहोर, विदिशा और इंदौर जैसे अपने पुराने गढ़ों में उनकी पदयात्राएं, किसानों और कर्मचारियों से सीधा संवाद और दालों की खरीद पर स्थानीय घोषणाएं यह संकेत देती हैं कि वह सिर्फ मंत्री का फर्ज नहीं निभा रहे हैं, बल्कि अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखना चाहते हैं और भविष्य की किसी भी राजनीतिक भूमिका के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। उनकी ये गतिविधियां भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के लिए भी एक संदेश हो सकती हैं कि प्रदेश में उनकी लोकप्रियता अभी भी बरकरार है। पहले शिवराज सिंह बार-बार कहते थे कि वे एमपी में ही काम करना चाहते हैं। वे केंद्र में जाना नहीं चाहते थे अब उनके सुर बदल गए हैं। उनका कहना है कि मुझ जैसे साधारण कार्यकर्ता को पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया और लगातार मुझे ही बार-बार जिम्मेदारी दी गई। मुझे मालूम है कि पार्टी काबिल लोगों को पहचानती है और वह समय पर बड़ी जिम्मेदारी देती है।
शिवराज सिंह की पदयात्राओं में उमड़ रही भीड़ और लोगों का उत्साह यह बताता है कि वह अभी भी मध्य प्रदेश की जनता के दिलों में बसते हैं। किसानों और कर्मचारियों से उनकी मुलाकातें, उनकी समस्याओं को सुनना और उन पर तुरंत प्रतिक्रिया देना यह उनकी चिर-परिचित कार्यशैली का हिस्सा है। दालों की खरीद को लेकर उनकी घोषणाएं, भले ही वे केंद्र सरकार की नीति का हिस्सा हों, लेकिन शिवराज उन्हें अपने व्यक्तिगत प्रयासों के रूप में पेश कर रहे हैं। भाजपा के भीतर इस सक्रियता के कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। कुछ का मानना है कि शिवराज अपनी पुरानी स्थिति को फिर से प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि अन्य इसे पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से एक संकेत के रूप में देखते हैं कि शिवराज को फिर मध्य प्रदेश में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार किया जा रहा है। यह भी संभव है कि भाजपा, आगामी विधानसभा चुनावों या किसी अन्य राजनीतिक परिस्थिति के लिए शिवराज की लोकप्रियता का लाभ उठाना चाहती हो। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी यह सक्रियता राज्य की
राजनीतिक तस्वीर पर क्या प्रभाव डालती है और भाजपा के भीतर क्या नए समीकरण बनते हैं।