नीतीश कुमार को करीब से जानने वाले भी उनके मन को भांप लेने का दावा नहीं कर सकते हैं। नीतीश कब धर्मनिरपेक्ष हो जाएं और कब दक्षिणपंथी, इसका अनुमान लगा पाना असंभव है। हां, इतना अवश्य है कि अपना नया दांव चलने से पहले वे कुछ ऐसे संकेत देना अवश्य शुरू कर देते हैं जिससे कयास लगाए जा सकते हैं कि अब एक बार फिर से बिहारी बाबू पलटी मारने के लिए व्याकुल हो रहे हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक पर संसद में जद(यू) ने भाजपा का साथ दिया तो उनके ही दो अत्यंत करीबियों ने पार्टी के इस स्टैंड की सार्वजनिक आलोचना कर बिहार में राजनीतिक माहौल गर्मा दिया है। पार्टी के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और वरिष्ठ नेता पवन वर्मा ने नीतीश कुमार से आग्रह कर डाला है कि वे पार्टी के इस स्टैंड पर पुनर्विचार करें। जानकारों की इस बयानबाजी को लेकर दो राय सामने आ रही हैं। कुछ का मानना है कि पी ़के ़ को चूंकि जद(यू) में कोई विशेष महत्व नहीं मिल रहा इसलिए उन्होंने नीतीश पर अपरोक्ष हमला बोल पार्टी छोड़ने की तैयारी कर ली है। लेकिन कुछ अन्य का दावा है कि ये बयानबाजियां नतीश बाबू के इशारे पर की गई हैं ताकि वक्त आने पर जद(यू) अपना स्टैंड बदलकर एक बार फिर से धर्म निरपेक्ष खेमे में शामिल हो सके। नीतीश कुमार का ‘नमामि गंगे’ परियोजना के लिए पीएम द्वारा बुलाई गई बैठक में न आने से भी कुछ ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं। बहरहाल कांग्रेस ने तय कर रखा है कि इस बार वह नीतीश कुमार के जाल में नहीं फंसेगी।
फिर पाला बदलेंगे नीतीश!
