कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों…! इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है बिजनेस वीमेन संगीता पांडे ने। जिन्होंने अपने अथक प्रयास से अपने लिए एक मुकाम हासिल किया है।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में एक महिला (संगीता पांडे) ने पुरुष कारोबारियों को भी पीछे छोड़ दिया है। महज 3 साल में इस महिला द्वारा 1500 रुपए और एक साइकिल से शुरू किया गया छोटा सा बिजनेस (पैकेजिंग उद्योग) आज 3 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस महिला के जज्बे और समर्पण को सलाम करते हुए उन्हें गोरखपुर रत्न से भी नवाजा है।
मध्यवर्गीय परिवारों की गृहिणियां और अन्य महिलाओं के लिए ये अब प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं।
इस महिला का नाम है संगीता पांडे। संगीता गोरखपुर की रहने वाली हैं। संगीता बिल्कुल आम महिला की तरह है। संगीता ने महिलाओं की आम सोच से ऊपर उठकर कुछ करने की ठानी और संघर्ष का रास्ता अपनाया और एक बड़ा मुकाम हासिल किया। आज हर कोई संगीता के जज्बे को सलाम कर रहा है।
उन्होंने द संडे पोस्ट से बातचीत में संगीता पांडे ने बताया, ‘जब मैंने अपना बिजनेस शुरू किया तो उस समय हम लोग बहुत छोटे स्तर में थे तो आदमी जितने छोटे परिवार के लेवल से रहता है उसे उतना कम परिवार से समर्थन मिलता है। जिस लेवल पर आदमी होता है उस लेवल तक ही उसकी सोच होती है। हम लोग जब इस लेवल से आगे बढ़े तो कठिनाई तो आई लेकिन मेरे पति और मेरे बीच का सामंजस्य बहुत अच्छा रहा। हम दोनों एक दूसरे पर बहुत विश्वास करते हैं। मेरे पति को हमेशा ये रहता था कि मैं कुछ करना चाहती हूँ तो करूँ। वो हमेशा से मेरा सपोर्ट करते थे। बाकी लोगों का कहना था कि क्या जरूरत है उसे काम करने की। पति नौकरी करता तो है बाहर निकलेगी कैसे लोगों से मिलेगी। पता नहीं क्या गलत करेगी क्या सही करेगी। तुम क्यों ऐसा फैसला ले रहे हो ?
लेकिन आज संगीता शिवपुर सहबाजगंज, पड़री बाजार, गोरखपुर में मिठाई की दुकानों में इस्तेमाल होने वाले फैंसी और पैकेजिंग बॉक्स बनाने की फैक्ट्री के साथ एक महिला स्वयं सहायता समूह चलाती हैं। जब संगीता ने कुछ करने का फैसला किया तो उसके दिमाग में सबसे पहला सवाल यही आया कि क्या किया जाए। संगीता बताती हैं कि एक दिन उन्होंने एक मिठाई की दुकान में पुराने डिब्बे देखे और सोचा कि क्यों न इन्हें बनाने का व्यवसाय शुरू किया जाए।
संगीता अपने साथ करीब 150 महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं। संगीता बताती हैं, घर और बिजनेस दोनों को कैसे संभालती हैं। उनका कहना था कि मैं तो पहले घर को देखती हूँ क्योंकि मेरा परिवार ही मेरे लिए सर्वोपरि ह। मेरी पति मेरे बच्चे जिनसे मैं जुड़ी हुई हूँ जिनके लिए परिश्रम कर रही हूँ। मेरा सबसे पहले ध्यान मेरे परिवार पर रहता है। हालांकि इसके लिए मुझे थोड़ी मेहनत ज्यादा करनी होती है जल्दी उठना पड़ता है देर रात सोती हूँ। लेकिन मैं उठती हूँ परिवार को संभालती हूँ बच्चों को नास्ता, खाना कराने, पति को ऑफिस भेजने के बाद मैं ऑफिस जाती हूँ। ये इसलिए भी कि मान लीजिये मैं कभी रेस में आगे निकल जाऊं और जो जरुरी चीज है मेरी वो पीछे छूट जाए तो फिर जब मैं लौट कर पीछे आऊं तो फिर मैं पीछे ही रहे जाउंगी और आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलेगा।
यह सारा सम्मान अगर मेरे पति मेरे बच्चे साथ न हो तो मेरे लिए बेकार है। ये सब मेरे लिए तभी संभव हैं जब मैं अपनी महिला होने की सभी जिम्मेदारियों को निभाऊंगी तभी ही पति का भी मुझे समर्थन रहेगा। अगर मैं अपनी जिम्मेदारियों से भागूंगी तो वो ये कहेंगे कि ठीक है तुम अपना काम छोड़ दो। ये आम बात है। हमारे भारतीय समाज में महिलाएं सबसे अधिक समय अपने परिवारों को देती हैं उसके बाद ही जब हमारे पास समय बचता है। इसके लिए महिलाओं को बहुत संघर्ष करना पड़ता है। पूरा दिन घर का काम ही करते रहिये समय नहीं निकल पाता है हम उसी में व्यस्त रह जाएंगे। अगर हमें अपनी कोई पहचान बनानी है या हमें अपने लिए कुछ करना है तो सबसे पहले हम परिवार के कामों को निपटा कर फिर समय निकालें और कुछ करें।
एक निजी न्यूज़ पेपर के शीर्षक और स्टोरी में हमने पढ़ा कि ससुराल पक्ष से संगीता पांडेय को ताने भी सुनने को मिलें। लेकिन उन्होंने द संडे पोस्ट से बातचीत में इस बात को गलत बताया और कहा कि मेरी सास और ससुराल पक्ष ने मुझे कभी ताने नहीं दिए हैं। उन्होंने कहा उन्होंने शायद हमारी बातों का गलत मतलब निकाल लिया होगा। लेकिन कुछ लोग तो ऐसे होते ही हैं कि जब कोई आगे बढ़ता है तो उसकी टांग खींचते हैं कभी हाथ बढ़ाकर सपोर्ट नहीं करते हैं। लोग चाहते हैं कि कोई महिला आगे न बढ़ पाए बल्कि मुँह के बल गिर जाए।
आज उनका कारोबार गोरखपुर से महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, बस्ती, सीवान, गोपालगंज और आसपास के जिलों में फैल गया है। अब वह बड़े आयोजनों के लिए गिफ्ट पैकिंग बॉक्स और आइटम भी मुहैया कराती हूं। उनके पास दिवाली और अन्य प्रमुख त्योहारों के दौरान कोई खाली समय नहीं होता है। मुख्यमंत्री से गोरखपुर रत्न पुरस्कार प्राप्त करने पर संगीता कहती हैं, “यह सम्मान मुझे और अधिक प्रेरित करता है, क्योंकि मुख्यमंत्री पूरे राज्य के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं और उनसे यह पुरस्कार प्राप्त करना मेरे लिए बहुत गर्व की बात है।
मेरी जैसी छोटी शखियसत को उन्होंने ढूंढ निकाला और सम्मान दिया। मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है लेकिन हम एक बार न व्यापारियों के संवाद में गए थे जिसमें सभी पुरुष थे और महिला व्यवसाई में हम अकेले थे उसमें सीएम योगी सभी से उनकी परेशानियां पूछ रहे थे तब मैंने भी हाथ उठाया कि मैं कुछ कहना चाहती हूँ तो उन्होंने कहा संगीता जी को माइक दीजिए। माइक तो ले ले लिया मैंने लेकिन बड़ा असहज महसूस हुआ कि मैं क्या बोलूं मैं कैसे बोलना शुरू करूँ। मैंने हिम्मत जुटा कर बोला माननीय मुख्यमंत्री जी, उन्होंने टोकते हुए कहा बिना डरे आप अपनी बात कहें जिससे मेरे मन से डर खत्म हुआ और मैंने कहा कि हमारे यहां कई महिलाएं हैं तो अपने समय का सदुपयोग करना चाहती हैं कुछ काम करना चाहती हैं लेकिन कई दिक्क्तों के चलते वो नहीं कर पाती हैं।
‘हर गांव – एक लाइब्रेरी’ मिशन ने बदली, गांवों की तस्वीर
ऐसे में हमें कुछ ऐसे काम विकसित करने चाहिए जिन्हें घर में रहकर खाली समय में महिलाएं कर सकें। जैसे मैं खुद भी पैकेजिंग का काम करती हूँ। ऐसी महिलाओं के घर कच्चा माल भिजवा देती हूँ वो मुझे डिब्बे बनाकर दे देती हैं उसके बाद मैं मंगवाकर माल को बाजार में बेचकर उन्हें उनका मूल्य देदे देती हूँ। इससे उनके समय का सदुपयोग भी हो जाता है और वो आत्मनिर्भर भी बनती हैं उनको कुछ आमदनी भी हो जाती है। ऐसे काम में सरकार भी सहयोग करे ताकि महिलाएं आगे बढ़ सके।
जब मेरे पास मेरी छोटी बेटी थी मैं बेटी को लेकर काम करने जाती थी तो लोग साफ कहते थे आप अपने बच्चे को लेकर काम करने नहीं आ सकती हैं आपको काम करना है तो करिए और नहीं करना तो मत करिए मुझे बड़ी निराशा होती थी मैं वापस चली आती थी। एक दिन में बच्चे को बच्चे को लाना है तो काम पर मत आइयेगा। एक दिन मैं बच्चे को घर पर छोड़कर गई भी लेकिन मेरा मन नहीं माना। लगा जिनके लिए मैं परिश्रम कर रही हूँ। अपने मातृत्व का त्याग कर रही हूँ ऐसा सोचकर मैंने काम छोड़ दिया। कहते हैं कि आवश्यकता ही अविष्कारों की जननी है। मुझे काम की जरूरत भी थी और मैं परिवार भी नहीं छोड़ सकती थी तो काम को ही घर में ले आई। फिर मैंने घर पर ही मिठाई के डिब्बे बनाने शुरू किया और मैंने पहले ही सोच लिया था कि मेरा काम जब बढ़ जाएगा तो मैं मेरे जैसी बच्चों वाली महिलाओं को पहले रोजगार दूंगी और वो दिन है और आज का दिन है।
मैंने यह सोचा है कि गोरखपुर के जितने आस पास के जिले हैं वहां रह रही जरूरतमंद महिलाओं को मैं अपने इस काम में जोड़ पाऊं। उन सबको रोजगार मुहैया करा पाऊं। मेरी दृढ इच्छा है मेरी आगे की यही योजना है। कई काम कैर्री बैग, बॉक्स, हैंड मेड और भी आइटम्स ड्राई फ्रूट्स पैकिंग ट्र आदि।