गृहस्थ आश्रम में पहुंचने के बाद स्वाभाविक तौर पर बुजुर्ग अपने परिवार को छांव (छाया) देते हैं, लेकिन झारखंड के निवासी 63 वर्षीय कमल किशोर दास अपने आस-पास के इलाकों के हजारों लोगों के बीच पेड़ों की छांव बांट रहे हैं। तीन दशक पहले उनके मन में पर्यावरण संरक्षण और पौधारोपण के प्रति चेतना जागी तो दिन-ब-दिन उसका दायरा बढ़ता ही चला गया। पौधारोपण का उनका जुनून इतना ज्यादा था कि 30 साल में 30 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं, इनमें ज्यादातर अब पेड़ बन चुके हैं।
रोज सुबह वह अपने इस जुनून को मुकाम तक पहुंचाने के लिए निकल पड़ते हैं और वापस लौटने से पहले कई पौधे लगा चुके होते हैं। इसी के चलते ट्री-मैन के नाम से विख्यात कमल की कहानी थोड़ी अलग है। उनका सपना था कि वह खूब मन लगाकर पढ़ेंगे, लेकिन बचपन से ही उनकी आंखें कमजोर होने के कारण वह पढ़ाई नहीं कर सके। पर्यावरण संरक्षण का सबक मिला तो इतनी संतुष्टि मिली, मानो पढ़ाई पूरी हो गई।
सरकारी और अनुपयोगी पड़ी जमीन पर भी वह अनुमति लेकर पौधरोपण में जुट जाते हैं। पौधों के बढ़ने तक लगातार उनकी देखभाल करते हैं। चक्रधरपुर से होकर गुजरने वाली संजय नदी के वीरान पड़े तट पर उन्होंने हरियाली ला दी है। देसी प्रजाति के आम, नीम, पीपल, बरगद आदि पौधे लगाना उनकी प्राथमिकता होती है। कमल बताते हैं कि वह पेड़ों की पूजा करते हैं, उसका महत्व समझते हैं, इसलिए पेड़-पौधों और हरियाली का दायरा बढ़ाते रहना चाहते हैं। उनकी कोशिश है कि हर आयु के लोग इस अभियान में जुटें।