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सैलानियों ने गांव को बनाया स्वर्ग 

अमृता और उनके जर्मन पति उत्तराखंड के एक गांव में घूमने आए, मगर यहीं के होकर रह गए। उनहोंने चितई गांव में आर्गेनिक खेती का एक ऐसा मॉडल बनाया जिसकी प्रशंसा देश-विदेश में हो रही हैं। उनके इस प्रयास से 100 लोगों को अपने ही गांव में रोजगार मिल रहा है 
अल्मोड़ा से करीब 10 किलोमीटर आगे विश्व प्रसिद्ध चितई मंदिर है। इस मंदिर में देश-विदेश के लोग अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए जाते हैं। जहां लोग चिट्ठियों में अपने मन की बात लिख कर टांग देते हैं। किंवदंती है कि उसके बाद उनकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।  इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर से सटा हुआ गांव चितई पंत है। चितई पंत गांव आजकल मॉडल विलेज इको विलेज के नाम से मशहूर हो रहा है। इको-विलेज मॉडल बनने में इस गांव को पूरे दो दशक लगे हैं।
 दरअसल, इसके पीछे बेंगलुरु से आई अमृता और उनके जर्मन पति की सोच है। बेंगलुरु की अमृता और उनके जर्मन पति आए तो थे इस गांव में  घूमने के लिए, लेकिन वह फिर इसी गांव के होकर रह गए। यहां उन्होंने नेचुरल रिसोर्सेज देखे। साथ ही यह भी देखा कि गांव के लोग नेचुरल रिसोर्सेस का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।
इसी के साथ ही पलायन यहां का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया। लोग नौकरी करने के लिए दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद जा रहे थे। ऐसे में अमृता और उनके पति ने लोगों के लिए रोजगार के दरवाजे खोले। सबसे पहले उन्होंने गांव के किसानों से उनकी ऑर्गेनिक फसल खरीदनी शुरू की। उसके बाद इस फसल से वह ऑर्गेनिक उत्पाद बनाने लगे। देखते ही देखते उनके यह ऑर्गेनिक उत्पाद देश और विदेश में मशहूर हो गए। ऑफलाइन और ऑनलाइन उनकी बिक्री जबरदस्त तरीके से शुरू हो गई।
 यहां तक कि फ्लिपकार्ट और अमेजन ने भी उनको अपनी वेबसाइट से बेचना शुरू कर दिया। उसके बाद आज हालत यह है कि उनकी कंपनी एसओएस ऑर्गेनिक का टर्नओवर एक करोड़ से अधिक पहुंच गया है। साथ ही यहां चितई पंत गांव के 100 लोगों को रोजगार मिल गया है। जिन लोगों को रोजगार मिला है उनमें महिलाएं सबसे अधिक हैं।
अमृता पहले लखनऊ में रहती थी । लेकिन आज से करीब 20 साल पहले वह अपने पति के साथ लखनऊ से उत्तराखंड के अल्मोड़ा में पहुंची। जहां से वह चितई मंदिर पहुंचे। चितई मंदिर के पास ही पंत गांव है।
 जब वह पंत गांव पहुंचे तो उन्हें ऑर्गेनिक खेती का आइडिया आया। इसके बाद उन्होंने किसानों को ऑर्गेनिक खेती करने का सुझाव दिया। यही नहीं बल्कि अमृता और उनके पति ने करीब 6 साल तक ऑर्गेनिक उत्पाद बनाने के लिए रिसर्च किया। जिसमें नेचुरल तरीके से पहाड़ी उत्पाद बनाने शुरू किए गए। इन उत्पादों में कोई बाहरी पॉलिश नहीं होती और ना ही किसी तरह का केमिकल डाला जाता है। शुद्ध रूप से यह नेचुरल होते हैं।
 वर्ष 2008 में अल्मोड़ा के चितई पंत गांव में दोनों ने मिलकर एसओएस ऑर्गेनिक नाम से बिजनेस की शुरुआत की। जिसकी शुरुआत किराए के एक घर से हुई। इसमें उन्होंने साबुन से लेकर शहद, चाय , कैंडल, ऑयल आदि दर्जनों प्रोडक्ट बनाने शुरू किए।
 हेल्थ से लेकर कॉस्मेटिक तक के प्रोडक्ट बनाकर अमृता और उनका पति दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, जयपुर जैसे महानगरों में भेजने लगे। धीरे-धीरे उनका कारोबार बढ़ता गया और यहां तक कि विदेशों से भी उनके उत्पादों की मांग बढ़ने लगी। आज अमृता और उनके पति स्थानीय किसानों से ही उनकी फसलों को खरीदते हैं जिनमें दाल, अनाज, गहत आदि होते हैं। इनको वह प्रोसेस करके मार्केट में भेज देते हैं ।
आज एसओएस ऑर्गेनिक अपने 50 से ज्यादा प्रोडक्ट देश और विदेश में बेच रहा है। एसओएस ऑर्गेनिक की बिच्छू घास से बनी चाय बहुत ज्यादा फेमस है। बिच्छू घास से बनी हुई चाय बिना कोई कलर या डाई किए हुए बनाते हैं। बिच्छू घास का प्रयोग इम्युनिटी बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही एसओएस ऑर्गेनिक पहाड़ी नमक को भी बाजार में बेच रहा है।

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