जंगली जीवों को पकड़कर उनके सुरक्षित ठिकानों पर छोड़ दिया जाता है। इस रेस्क्यू ऑपरेशन में वन विभाग की हरिद्वार रेंज सबसे अव्वल है
आए दिन विस्तार करता हरिद्वार शहर लगातार वन सीमा में घुसा जा रहा है। शायद यही कारण है कि शहर जंगली जीवों की घुसपैठ और आवाजाही का केंद्र बन गया है। हरिद्वार रेंज के जंगल से सटे शहरी क्षेत्र में वन्य जीवों की सबसे ज्यादा आवाजाही दर्ज हुई है। इन वन्य जीवों को पकड़कर सुरक्षित जंगल में छोड़ दिया जाता है। पूरे हरिद्वार वन प्रभाग में 90 प्रतिशत वन्य जीवों के बचाव ऑपरेशन अकेले हरिद्वार रेंज में ही देखने को मिले हैं।
हरिद्वार डीएफओ कार्यालय में मौजूदा रिकॉर्ड से पता चलता है कि अकेले हरिद्वार शहर में प्रति दिन औसतन 3 से 4 रेस्क्यू ऑपरेशन होते हैं जिनमें 95 प्रतिशत मामले जहरीले सांपों से जुड़े होते हैं। जिनमें स्नेक वाईपर से लेकर किंग कोबरा जैसे किलिंग मशीन कहे जाने वाले सांप शामिल हैं। अकेले हरिद्वार रेंज में ही वन्य जीवों को लेकर इतने बचाव ऑपरेशन होते हैं कि प्रभागीय सुरक्षा दल और वन विभाग ने मिलकर वर्ष 2019 में 1000 से ज्यादा रेस्क्यू ऑपरेशन किए हैं यानी प्रतिदिन तीन से चार रेस्क्यू ऑपरेशन यहां किए जाते हैं। ठीक इसके विपरीत हरिद्वार वन प्रभाग के अन्य क्षेत्रों में साल भर में मात्र एक या दो ही रेस्क्यू ऑपरेशन किए जाते रहे हैं। वर्ष भर की बात करें तो वन विभाग की रसियाबढ़, खानपुर जैसी रेंज में पूरे वर्ष में केवल दो- दो वन्यजीवों का रेस्क्यू किया गया, जबकि डिवीजन की सबसे बड़ी चिड़ियापुर रेंज में मात्र 6 रेस्क्यू, श्यामपुर में 20 रेस्क्यू तथा शहर से लगी हुई रुड़की रेंज में वर्ष भर में कुल 27 वन्य जीवों के रेस्क्यू किए गए हैं। देहात से लगी हुई लक्सर रेंज में इन सबसे ज्यादा 128 रेस्क्यू किए गए।
हरिद्वार शहर में कितने वन्य जीव घुसपैठ करते हैं इसकी पूरी जानकारी हमें वन विभाग के रिकॉर्ड आसानी से दे देते हैं। पूरे वन प्रभाग में वर्ष भर में 250 विशालकाय प्रजाति के अजगर पकड़कर रेस्क्यू किए गए। इनमें से 214 अजगर सांप हरिद्वार रेंज में ही पाए गए। वहीं दूसरी ओर अत्यंत जहरीले वाइपर स्नेक पूरी डिवीजन में कुल 168 पकड़े गए जिनमें से पूरे जनपद में कुल 7 वाइपर स्नेक ही अन्य जगह से पकड़े गए बाकी 161 वापर स्नेक अकेले हरिद्वार रेंज में ही पकड़कर रेस्क्यू किए गए। इसी तरह कोबरा सांप के के 82 मामले पूरे डिवीजन में पकड़कर रेस्क्यू करने के सामने आए जिनमें अकेले हरिद्वार रेंज में 77 कोबरा सांपों को पकड़कर सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया गया। घोड़ा पछाड़ यानी उड़ने वाले त्रिकेट सांप और करेत, धामन सांप की कुल संख्या 136 रही।
पूरे वन प्रभाग में किंग कोबरा के केवल 14 ही रेस्क्यू किए गए। आश्चर्य की बात है कि यह सभी के सभी हरिद्वार रेंज में ही पकड़े गए। अन्य प्रजातियों की अगर बात करें तो कुल 262 अन्य प्रजाति के सांप पूरे जनपद में पकड़े गए जिनमें से 250 हरिद्वार रेंज में ही पकड़े गए।
इसी तरह पूरे वर्ष भर में वन विभाग द्वारा दो गुलदार और दो हाथियों का रेस्क्यू किया गया। यह दोनों गुलदार और हाथी हरिद्वार रेंज में पकड़कर रेस्क्यू किए गए। यह आंकड़े और रिकॉर्ड बताते हैं कि हरिद्वार शहर में वन्यजीवों खासकर सांपों की कितने घुसपैठ प्रतिदिन होती है। वन विभाग की टीम सूचना मिलने के कुछ मिनटों के भीतर जाकर ऑपरेशन को अंजाम देती है।
हरिद्वार रेंज में यदि भयंकर सांपों की घुसपैठ ज्यादा है तो दूसरी ओर देहात क्षेत्र की लक्सर रेंज में मगरमच्छ सबसे ज्यादा तादाद में पाए जाने लगे हैं। खतरा तब बढ़ जाता है जब ये खतरनाक जीव आबादी क्षेत्रों में प्रवेश कर जाते हैं। वर्ष 2019 में लक्सर रेंज में एक दो नहीं, बल्कि 42 बार मगरमच्छ आबादी क्षेत्रों में घुसे हैं जिन्हें लक्सर रेंज की वन विभाग टीम द्वारा रेस्क्यू किया गया। जबकि पूरे जनपद भर में साल के दौरान 90 मगरमच्छ पकड़े गए हैं। लक्सर रेंज में मगरमच्छों की संख्या पनपने का बड़ा कारण अवैध खनन भी है। खनन माफियाओं द्वारा इस इलाके में तीस- तीस फिट की गहराई तक खनन किया गया। ये गड्ढे इन विशालकाय मगरमच्छों की शरणस्थली बन जाते हैं। लक्सर रेंज में चीतल और सांभर के भी 29 रेस्क्यू हुए हैं।
स्नेकमैन का दर्द
हरिद्वार रेंज में पिछले कई वर्षों से संविदाकर्मी के तौर पर तैनात भोला स्नेकमैन के नाम से जाना जाता है। आबादी में घुसे सांप को पकड़ने में भोला को महारत हासिल है। उसके साथ काम करने वाले अन्य वनकर्मी बताते हैं कि सांप पकड़ने में जो कला भोले के पास है वह किसी और के पास नहीं। अब तक वह करीब 1000 से ज्यादा सांप पकड़ चुका है। सांप पकड़ने में उसकी दक्षता और क्षमता इतनी ज्यादा है कि एक- एक दिन में चार- पांच सांप तक पकड़ लेता है। कभी- कभी तो भोले को खाना खाने के लिए भी टाइम नहीं मिलता। इसके बावजूद भोला वन विभाग में विपरीत परिस्थितियों में काम कर रहा है। उसको वन विभाग की ओर से मात्र 8000 रुपए दिए जाते हैं। इस इतनी सी तनख्वाह में उसे 24 घंटे की ड्यूटी देनी पड़ती है। वन विभाग के लिए भोले की उपस्थिति भले ही अति महत्वपूर्ण हो पर वन विभाग ने भोले के साथ सही न्याय नहीं किया। जबकि उसको अब तक स्थाई नियुक्ति मिल जानी चाहिए थीं। लेकिन वन विभाग के अपेक्षापूर्ण रवैये के चलते वह अब तक संविदाकर्मी के तौर पर ही तैनात है, जबकि जिन लोगों को उसने सांप पकड़ना सिखाया आज वो उससे तिगुना वेतन पा रहे हैं।
पहले ये व्यवस्था नहीं थी, पर अब हम रेस्क्यू किए जाने वाले हर वन्य जीव का रिकॉर्ड रखते हैं। हमने ऐसी व्यवस्था की हुई है कि सूचना मिलने के कुछ मिनट के भीतर ही हमारी टीम मौके पर पहुंच जाती है। रेस्क्यू टीम को अलग खर्च भी विभगा द्वारा दिया जाता है। अब कुछ प्रशिक्षित कर्मियों की नियुक्ति भी की गई है जो जनवरी से काम करेंगे।
आकाश वर्मा, डीएफओ, वन प्रभाग, हरिद्वार