[gtranslate]
Positive news

दूसरों के चेहरों पर चमक देखने को शानदार कैरियर छोड़कर जोकर बन गईं शीतल 

एक अच्छी नौकरी की हर किसी को चाह होती है। लेकिन क्या आपने सुना है कि कोई नौकरी छोड़ कर जोकर बनना पसन्द करे। नहीं सुना है तो आज हम आपको ऐसी ही एक लड़की की कहानी बताने वाले हैं।

एक लड़की जो स्वभाव से शर्मीली है। उन्होंने हिन्दू कॉलेज से सोशियोलॉजी में ग्रेजुएशन की। फिर जेएनयू से मास्टर डिग्री प्राप्त की। उसके बाद फिर डीयू से एमफिल की उसके बाद इग्नू से लेकर आईपी यूनिवर्सिटी तक गेस्ट लेक्चर के तौर पर काम किया इतना ही नहीं फिर उन्होंने अमेटी यूनिवर्सिर्टी में विजिटर फैकल्टी के तौर पर पढ़ाया भी। इतने बढ़िया तरीके से चल रही ये ज़िन्दगी शायद उन्हें रास नहीं आई और पसन्द आया ‘जोकर’ बनना। इनका नाम है शीतल अग्रवाल वह आज देश की कामयाब जोकर हैं।

शीतल को समझने के लिए हमें शीतल के जीवन की खिड़की में झांकना होगा। शीतल अग्रवाल का जन्म नेपाल के काठमांडू में हुआ। पिता का नाम रोशल लाल पेशे से कारोबारी, माँ का नाम माला। शीतल चार भाई बहन में सबसे छोटी हैं। भाई बिजनेस मैन हैं।

एक सिस्टर हैदराबाद में साइकॉलिस्ट हैं। शीतल की पांचवीं तक की पढ़ाई काठमांडू में हुई। हर शनिवार को फैमिली का दैनिक काम था काठमांडू के पशुपति नाथ मंदिर के दर्शन करना। लौटते में ओल्ड ऐज होम या अनाथालय का भी चक्कर लगा लिया जाता था। शीतल को बचपन से ही सर्कस देखने का बहुत शौक था। खासकर जोकर देखना उन्हें बहुत पसंद था।

शीतल की फैमिली साल 1996 में काठमांडू से हिसार में बस गयी। पढ़ाई के लिए शीतल 2001 में दिल्ली आईं। पहले डीयू से सोशियॉलजी में ग्रेजुएशन किया। मास्टर डिग्री जेएनयू से। फिर डीयू से एमफिल सोशियोलॉजी। इग्नू में गेस्ट लेक्चरर बनीं। उसके बाद आईपी यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाया।

हॉलीवुड मूवी पैच एडम्स ने बदल दिया जिंदगी का मकसद

साल 2015 में मिनिस्ट्री में भी जॉब लग गई। अमेटी यूनिवर्सिटी नोएडा में सोशियॉलजी पढ़ाने लगीं। लेकिन उन्हें फिर भी  जिंदगी में कुछ कमी महसूस हुई। क्योंकि उन्हें खुद के लिए नहीं, बल्कि औरों के लिए कुछ करने का जुनून था। जुनून कुछ ऐसा कि उन्होंने साल 2018 में मंत्रालय की सरकारी जॉब और अमेटी से पढ़ाना भी छोड़ दिया। जिसकी वजह रहा साल 2015।

यह भी पढ़ें : सिर्फ 90 रुपये में इस गांव में मिल रहा है घर !

जब उन्होंने सच्ची घटना पर आधारित हॉलीवुड मूवी पैच एडम्स देखी। इस फ़िल्म को देखकर उनका जीने का मकसद ही बदल गया। बचपन में देखे सर्कस के जोकर वाले सीने आंखों के सामने प्रतीत होने लगे।। यहीं से उनके जिंदगी जीने का लक्ष्य ही चेंज हो गया। इंटरेनट पर मेडिकल क्लाउंस से जुड़ी साइट्स, ई-बुक्स खोज डालीं। जनवरी 2016 में अहमदाबाद में एक विदेश से आए शख्स से मिलीं। वहां से  जीवन से निराश, बीमार लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट का जीवन मंत्र लेकर लौटीं। जो थी क्लाउंस की लाफ्टर थेरेपी।

पांच घंटे की परफॉर्मेंस में बदला माहौल

बचपन से ही शीतल शर्मीली थी। उनके अंदर एक डर भी था कि आखिर शुरुआत कैसे करूँ? 9 जुलाई 2016 को क्लाउंसलर्स शुरू किया। फेसबुक पर पोस्ट डाला तो 33 का रिस्पांस आया। पहली बार में दिल्ली मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ से अप्रूवल लिया। ईमेल एक्सचेंज हुए। वहां से रिस्पांस मिले। वह चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय गीता कॉलोनी के डाइरेक्टर से मिली। उस समय तक इंडिया में मेडिकल क्लाउंस नया शब्द था। हां, हॉस्पिटल के डाइरेक्टर को उस फिल्म के बारे में पता था।

उन्होंने माना, फिजिकल के साथ इमोशनल, मेंटल हेल्थ की थैरेपी तेजी से प्रभाव दिखाती है। शनिवार की परमिशन मिली। पहली बार शीतल और उनकी पांच लोगों की टीम जोकर का सामान खरीदकर पहुंचे। लाल चटकीली नाक, रंग-बिरंगी घुंघराली विग अस्पताल के कॉरिडोर में मेकअप किया। जब लाल चटकीली नाक, रंग-बिरंगी घुंघराली विग, झालरनुमा कपड़े पहने हाथों में बैलूंस लिए बच्चों के वॉर्ड में प्रवेश किया तो सांसें थम गईं। कमरे में दवाओं की तेज गंध थी। सफेद बिस्तरों पर मुरझाए हुए बच्चों के चेहरे थे जो बहुत निराश थे। उनके शरीर में सुइयों और नलियां लगी थी। कुछ बच्चों की माँ भी वहां अपने बच्चे की सलामती की दुआ मांग रही थी। ऐसे दुखद वातावरण में जोकर की एंट्री हुई। लेकिन पांच घंटे की परफॉर्मेंस में माहौल बदल गया।

उदास चेहरे खुशी से खिल उठे। फिर, हर शनिवार अस्पताल में यही काम। संडे को वृद्धाश्रम, अनाथलय या स्लम एरिया में जाने लगे। क्लाउंस की लॉफ्टर थैरेपी ने बच्चों के अंदर तेजी से सुधार के रिजल्ट ला दिए।

मुस्कान लाने की अपनी कोशिश से खुश हैं शीतल

शीतल अग्रवाल का कहना है कि मुझे याद है, अस्पताल में एक बच्चा बेहद क्रिटिकल था। मां रोती थी कि वह रिएक्ट नहीं करता। जब 20 मिनट तक उसके सामने जोकर बनकर लाफ्टर डोज दी। आखिर में उसने रिएक्ट किया। मां की आंखों में आंसू आ गए। उन्हें विश्वास जगा कि अब यह ठीक हो जाएगा।

फिर क्या था शीतल को दिल्ली के बाकी अस्पतालों से भी कॉल आने लगीं। अपोलो के बच्चों के कैंसर वॉर्ड में क्लाउंस को शुरू किया। अब दिल्ली एनीसआर ही नहीं, कश्मीर, पुणे, मणिपुर, मेघायल, बेलगाम, जयपुर, मुंबई, नोएडा में भी उन्हें बुलाया जाने लगा है।
लॉकडाउन के दौरान लोगों को डिप्रेशन से निकालने के लिए रैन बसेरा, राधा स्वामी, यमुना स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स में भी क्लाउंस किया। इसी हफ्ते मुंजाल यूनिवर्सिटी नोएडा में किया। क्लाउंसलर्स नाम से शीतल का एक ग्रुप है। जिसमें सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डॉक्टर, टीचर, स्टूडेंट्स, हाउस वाइफ सभी जुड़े हुए हैं। ये सारे यंगस्टर शीतल के साथ जोकर बनकर घूमते हैं और लोगों को हर दुख में मुस्कुराने की सलाह देते हैं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD