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पति की असामयिक मृत्यु होने से तीन छोटी बेटियों के परवरिश की जिम्मेदारी हेमा के कंधों पर आ गई। राह कठिन थी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। अपनी बेटियों की परवरिश के साथ ही असहाय महिलाओं को सशक्त बनाने का बीड़ा उठाया जिसमें उन्हें कामयाबी मिल रही है। जनहित के अभियानों में सक्रिय भागीदारी के चलते हेमा को तीलू रौतेली पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है

 

रास्ते बेशक कांटे भरे हों, लेकिन हौसला बुलंद हो तो उबड़-खाबड़ डगर भी आसानी से पार हो जाती है। जीवन में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच भी व्यक्ति अपनी राह बना ही लेता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाने में सफल रही हैं हेमा थलाल। वे आज सफल समाज सेविका हैं। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, नशा मुक्ति एवं पर्यावरण संरक्षण अभियान में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ ही वे अपनी तीन बेटियों की सफल परवरिश भी कर रही हैं। जिए राह आज वह चल रही हैं, वह इतनी आसान नहीं थी, लेकिन समाज सेवा का संकल्प एवं काम करने के जुनून के चलते वह हर बाधा को पार करती चली गईं।


सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के बलुवाकोट क्षेत्र में जन्मीं हेमा एक के बाद एक रुढ़ियों को तोड़ती चली गई। बचपन से ही मेधावी रहीं हेमा ने जब उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बलुवाकोट महाविद्यालय में दाखिला लिया तो छात्र राजनीति की तरफ रुचि जागृत हुई। छात्र संघ चुनाव में वे छात्रा उपाध्यक्ष की आरक्षित सीट से लड़ सकती थीं, लेकिन अपना दम खम दिखाने के लिए वह कोषाध्यक्ष की सामान्य सीट से चुनाव लड़ी और विजयी रही। यहां से छात्र-छात्राओं के हितों के लिए संघर्ष करने के साथ ही अपने सामाजिक सेवा के संकल्पों को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया और एक-एक कर उसमें चोट करती चली गई। अंतरजातीय विवाह कर जातीय व्यवस्था पर प्रहार किया। हेमा खुद भट्ट ब्राह्मण थी, लेकिन उन्होंने ठाकुर उपजाति के मदन थलाल नामक व्यक्ति से शादी कर जातीय व्यवस्था के खिलाफ जाने का हौसला दिखाया। अभी वह घर गृहस्थी के झंझटों से दूर निकल अपने सामाजिक अभियानों को विस्तार देती कि विवाह के आठ साल बाद ही उनके पति की मृत्यु हो गई। अब हेमा के समक्ष अपनी तीनों छोटी बेटियों की परवरिश की जिम्मेदारी आ गई। हेमा कहती हैं कि पति की मृत्यु के बाद मैं लगभग टूट चुकी थी, लेकिन मैंने हिम्मत बटोरी और तीन बेटियों की परवरिश के साथ ही समाज सेवा के अपने संकल्प को मजबूत किया। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के साथ ही पर्यावरण संरक्षण एवं नशामुक्ति के अभियान में जुट गई। इस बीच तमाम विभागों और सक्षम लोगों की मदद से समाज के गरीब तबके के लोगों के हित में जितना हो सकता है उतना करने की कोशिश की। सामाजिक अभियानों में सक्रिय भागीदारी के चलते विगत वर्ष वह उत्तराखण्ड राज्य के प्रतिष्ठित तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं।

हेमा ने अपनी आजीविका के लिए जब ब्यूटी पार्लर का काम करना शुरू किया तो उन्हें लगा कि ऐसी बहुत सी गरीब महिलाएं हैं जिनके पास अपना कोई आर्थिक आधर मौजूद नहीं है, तो उन्होंने जरूरतमंद महिलाओं को ब्यूटी पार्लर का निःशुल्क कोर्स कराना शुरू किया। अब तक वह करीब 50 महिलाओं को यह कोर्स करा चुकी हैं। इसके अलावा महिलाओं के लिए बने निर्भया प्रकोष्ठ के माध्यम से वह कई महिलाओं को कानूनी रूप से मदद पहुंचा चुकी हैं। संपन्न व्यक्तियों के सहयोग से बर्तन, गैस, बिस्तर, कपड़े आदि की मदद भी वह बेसहारा औरतों को प्रदान कर रही हैं। पुलिस, वन विभाग, आईटीबीपी, एसएसबी द्वारा समाज हित में किए जा रहे कार्यों में भी हेमा की सक्रिय भागीदारी रही है। उनकी इसी निष्ठा को देखते हुए जिला प्रशासन पिथौरागढ़ ने उन्हें जनपद पिथौरागढ़ में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की संयोजिका नियुक्त किया तो बेटी बचाने के लिए किए गए प्रयासों के लिए सम्मानित भी किया गया। 13 फरवरी 2018 को वह उत्तराखण्ड से एलपीजी पंचायत के लिए राष्ट्रपति भवन में सम्मानित हो चुकी हैं। इसके अलावा कई सामाजिक और साहित्यिक संगठनों से भी समाज सेवा के तहत उल्लेखनीय कार्यों में सम्मानित किया जा चुका है। जनपद के बड़ौली, बास्ते, नगतड़, धारचूला, गंगोलीहाट, बलुवाकोट, विन्यागांव, टकाड़ी, चंडाक, भुरमुनी, पौंड, डिग्री कॉलेज, कनार विण, नवोदय, मूनाकोट, सतगढ़, कनालीछीना, बीसाबजेड़, आठगांव शिलिंग, पाबे, गौरंगचौड़ आदि गांवों में निरंतर अपनी सामाजिक गतिविध्यिं को चलाती रही हैं। यही नहीं वह लेखन के क्षेत्र में लगातार सक्रिय रही हैं। सामाजिक अभियानों के बीच वे लोक विमर्श, पहाड़ का दर्द और सौंदर्य जैसी पुस्तकें लिख चुकी हैं। साहित्यक गतिविधियों में भी उनकी निरंतर भागीदारी रहती है। वे प्रदेश से प्रकाशित मासिक पत्रिका उत्तराखण्ड मंथन के माध्यम से निरंतर जनहितों के सवालों को उठाती रही हैं। संघर्ष करने की इसी क्षमता ने उन्हें एक सामाजिक नेतृत्वकर्ता के तौर पर उभारा है। वे गरीब तबके की महिलाओं के लिए एक उम्मीद बन कर उभरी हैं।

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