काजल प्रकाश राजवैद्य KITS कंपनी की फाउंडर और सीइओ हैं। उन्होंने 2018 में आईटीई की ओर से दिया जाने वाला बेस्ट एंटरप्रेन्योर अवार्ड जीता था। यूएसए का टाइम्स रिसर्च अवार्ड और स्टार्टअप इंडिया की तरफ से दिया जाने वाला ‘एग्रीकल्चर इनोवेशन अवार्ड’ भी उनके नाम है। अकोला शहर में जन्मी काजल के पिता एक पानठेला चलाते थे। आमदनी ज़्यादा होती नहीं थी इसलिए उन्होंने जल्द ही एक निजी बैंक के रिकरिंग एजेंट (जो घर-घर जाकर ग्राहकों से पैसे लेते हैं और बैंक में जमा कराते हैं) की नौकरी कर ली।
काजल के परिवार में भाई, बहन, माँ सभी थे। ऐसे में अकेले की कमाई से घर चलाना मुश्किल तो था, पर काजल के पिता बच्चों को खूब पढ़ाना चाहते थे। काजल भी पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। चौथी तक जिला परिषद् के स्कूल में पढ़ने के बाद वह पास ही के एक अच्छे स्कूल में पढ़ना चाहती थीं, पर घर की परिस्थिति के कारण उनका दाखिला घर से 4 किमी दूर, ‘मनुताई कन्या शाला’ में करा दिया गया। केवल लड़कियों के लिया बना यह स्कूल एक निजी संस्था द्वारा चलाया जाता है और यहां छात्राओं से कोई फीस नहीं ली जाती।
उसी समय काजल ने दूरदर्शन पर रोबोट से जुड़ा एक शो देखा, जिसके बाद उनका एक ही सपना था कि वह भी एक दिन रोबोट बनाएंगी। रोबोट बनाने का भूत काजल पर बचपन से ऐसा सवार था। जब काजल पॉलिटेक्निक में एडमिशन लेने गई तो काजल ने उनसे कहा कि मुझे वो वाली ब्रांच लेनी है, जिसमें रोबोट बनाना सिखाते है। और इस तरह काजल को इलेक्ट्रॉनिक्स में एडमिशन दे दिया गया। काजल पॉलिटेक्निक के आखिरी साल में थीं, जब वह बैंक बंद हो गया, जिसमें उनके पिता नौकरी करते थे। घर की हालत और भी खराब हो गई। जिससे काजल की फीस भरने को भी पैसे नहीं थे। इस मुश्किल की घड़ी में काजल ने इंजीनियरिंग करने का इरादा भी छोड़ दिया। काजल के पिता ने लोन लेकर उनका दाखिला इंजीनियरिंग कॉलेज में करवा दिया।
काजल ने भी कड़ी मेहनत की और हर साल अच्छे नंबरों से पास होती रहीं। इस सिलेबस को लेकर काजल पुणे चली गयीं और वहां हर कॉलेज में जाकर छात्रों को अपनी क्लासेस के बारे में बताने लगी। पुणे में बिना काम के रह पाना मुश्किल था, इसलिए काजल अपने घर वापस लौट आयी। यहां वह कभी-कभी छोटे-मोटे प्रोजेक्ट्स बनाके और कभी कोचिंग क्लासेज के पेपर चेक करके अपना खर्च चलाती थीं। बाकी जितना भी समय उनके पास बचता उसमें वह इंटरनेट से रोबोटिक्स सीखती रहतीं। इसी तरह खुद सीख-सीखकर उन्होंने पांचवीं के बच्चों के लिए रोबोटिक्स का एक वर्कशॉप तैयार किया। अब वह हर स्कूल में जाकर अपने वर्कशॉप के बारे में बतातीं। ऐसे में काजल ने 2015 में महज़ 21 साल की उम्र में अपनी कंपनी ‘काजल इनोवेशन एंड टेक्निकल सोल्युशन किट्स’ की शुरुआत की।
इस सफर के दौरान उनसे विजय भटाड़ और अर्जुन देवराकर जैसे प्रतिभाशाली लोग भी जुड़ गए। विजय इससे पूर्व नासा में काम कर चुके थे और उन्होंने काजल की कंपनी में इलेक्ट्रॉनिक सर्विसेस देने का सेक्शन भी शुरू किया। काजल ने अपना फोकस बच्चों को प्रैक्टिकल वर्कशॉप कराने पर बनाये रखा और धीरे-धीरे KITS ने दिन रात मेहनत करनी शुरू कर दी। साथ ही इस टीम ने अपने अविष्कारों के लिए कई अवार्ड भी जीते। काजल की कंपनी KITS बच्चों को टेक्निकल और प्रैक्टिकल ज्ञान देती है।
साथ ही इलेक्ट्रॉनिक सामान का सर्विस देना भी इस कंपनी का एक पार्ट है। आज उनकी कंपनी के क्लाइंट्स यमन, सिंगापुर और अमेरिका जैसे देशों में भी हैं। सन् 1911 में मनुताई बापट नामक एक महिला ने समाज से लड़ते हुए एक सपना देखने का साहस किया। सपना था महिलाओं को शिक्षित करने का। इस सपने को पूरा करने के लिए महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर अकोला में नींव रखी गयी ‘मनुताई कन्या शाला’ की। 2020 में इसी विद्यालय से पढ़ी हुई एक लड़की, काजल राजवैद्य ने एक और सपना देखा। सपना था। इस मराठी माध्यम स्कूल की 14 लड़कियों को अंतरराष्ट्रीय रोबोटिक्स प्रतियोगिता के लिए अमेरिका ले जाने का। ये सभी लड़कियां बेहद गरीब परिवार से आती हैं।
किसी के पिता किसान हैं, तो किसी की माँ खेतो में मज़दूरी करके घर चलाती है। इन सभी लड़कियों को कुछ महीने पहले तक रोबोटिक्स का मतलब भी नहीं पता था। लेकिन जब मुंबई में राष्ट्रीय स्तर पर रोबोटिक्स प्रतियोगिता हुई, तो बड़े-बड़े अंग्रेजी माध्यम स्कूल के छात्रों से इन्हें जीतता देख किसी को यकीन ही नहीं हुआ। अब ये लड़कियां अपनी मेंटर काजल के साथ, अमेरिका में भारत का प्रतिनिधित्व करने की तैयारी में दिन रात जुट गई थी।काजल का मानना है कि अगर उनकी लगन सच्ची है तो कहीं न कहीं से रकम जुटाने के लिए मदद जरूर मिलगी। बस काजल ने अपने मन में ठानकर अपने सपने को पूरा कर डाला।