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स्थानीय भाषा में ‘चेलि बचा, चेलि पढ़ा’ अभियान चलाकर पीतांबर अवस्थी लोगों को बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान से जोड़ रहे हैं। वे शादी ब्याहों में जाकर नव दंपतियों से इस बारे में संकल्प पत्र भरवा रहे हैं
पिथौरागढ़ जिले में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान के संयोजक डॉ. पीताम्बर अवस्थी के नेतृत्व में शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों स्थानीय भाषा को केंद्र में रख ‘चेलि बचा, चेलि पढ़ा’ अभियान जोर-शोर से चल रहा है। सतवाली, नाकोट, सिनतोली, ढूंगा, बजेटी, हुडेती, पौड़ आदि गांवों, नगर के जीआईसी, वीयरशिवा, गौरंगचौड, जीआईसी इंटर कालेज में ‘चेलिन बचा, चेलिन पढ़ा’ अभियान चलाया गया। इस दौरान लिंगभेद की मानसिकता के खिलाफ लोगों को जागरूक किया गया व भू्रण हत्या न करने के संकल्प पत्र भी भरवाए गए। भू्रण हत्या करने व बेटियों के प्रति भेदभाव बरतने के पीछे की वजहों को जानने के लिए सर्वेक्षण भी कराया गया।
सर्वेक्षण फॉर्मेट में बालिकाओं की शिक्षा, उन्हें स्कूल न भेजने के कारण, बेटा-बेटी के अधिकार, गर्भपात कराने की मनोवृत्ति, भू्रण हत्या के कारण, महिला रोजगार एवं कार्यबोझ की स्थिति, बेटी के जन्म पर होने वाला माहौल, बेटियों को बोझ मानने के कारण, महिला उत्थान एवं बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियानों की स्थिति पर सवाल किए गए तो वहीं लिंगानुपात में सुधार के लिए सुझाव भी लिए गए। सर्वेक्षण के दौरान यह बात स्पष्ट रूप से निकलकर सामने आई कि अधिकतर महिलाएं एक बेटा तो जरूर चाहती हैं। दहेज हत्या, अल्ट्रासांउड तकनीक भी भू्रण हत्या का बड़ा कारण रहा है। इसके अलावा पारिवारिक विषमता एवं सामाजिक विषमता भी बेटियों और महिलाओं के प्रति भेदभाव बरतने को मजबूर करती है। इसके अलावा गरीबी, सामाजिक असंतुलन व असुरक्षा जैसे कारण भी अहम रहे हैं।
लगातार चल रहे बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियानों के अब सार्थक परिणाम दिखने लगे हैं। लोगों का नजरिया धीरे-धीरे बदल रहा है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के संयोजक डॉ  पीतांबर अवस्थी कहते हैं कि जनपद पिथौरागढ़ में एक समय ऐसा आ गया था कि जब यह जनपद लिंगानुपात के मामले में देश में खतरे में आए जनपदों में शामिल हो गया था, लेकिन पिछले सालों से लगातार बेटियों के जन्म व स्कूलों में बेटियों के नामांकन की संख्या में बढ़ोतरी के चलते अब बदलाव आया है। वह कहते हैं कि यह अभियानों का सकारात्मक पक्ष रहा है कि लोग अब बेटी के महत्व को समझने लगे हैं। उत्तराखण्ड बोर्ड व सीबीएससी बोर्ड की परीक्षा के परिणाम बताते हैं कि यदि बेटियों को मौका दिया जाय तो वे अपनी प्रतिभा का बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं। पिछले एक दशक से अधिक समय से बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान चलाने के दौरान मेरा अपना अनुभव रहा है कि अगर गांव-गांव, घर-घर जाकर लोगों को सही तरीके से बेटियों के महत्व के बारे में बताया जाय तो लोग बदलने को तैयार रहते हैं, लेकिन इसके लिए जागरूकता अभियानों के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है।
डॉ अवस्थी बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की सार्थकता को बनाए रखने के लिए अपने संसाधनों के बलबूते इसे जमीनी आकार देने में लगे हैं। इन्होंने बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए अपनी माता ने नाम पर हरूली आमा छात्रवृत्ति भी चलाई है। इस छात्रवृत्ति के तहत हर साल १० हजार रुपए की धनराशि वह विद्यालय में सर्वोत्तम अंक लाने, नियमित विद्यालय आने, गरीब परिवारों की मेधावी छात्राओं, खेलकूद प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन करने वाली छात्राओं को प्रदान करते हैं। गर्व से कहो कि हमारी बेटियां हैं। इस थीम को लेकर वह लोगों को जागरूक करते रहे हैं। इसके लिए दूर-दराज स्थित गांवों में जाकर गोष्ठियों के माध्यम से वह बेटी बचाओ आंदोलन की मुहिम में जुटे हैं। उनका लक्ष्य है हजारों साल पुरानी उस सामाजिक मान्यता को तोड़ना जिसमें बेटियों को बोझ व पराया धन माना जाता रहा है। वह इन शब्दों की समाप्ति चाहते हैं। वह गोष्ठियों के माध्यम से पुरानी सोच को खत्म कर नई सोच विकसित करने के लिए लगातार यह कहते हुए कि परिवार में बेटे और बेटी का समान महत्व है। न कोई बड़ा है न कोई छोटा। इस दौरान बेटे-बेटी के विभाजन को वह भ्रष्टाचार से जोड़ते हुए लोगों को बताते हैं कि अधिकांश भ्रष्टाचार बेटे के नाम से ही किया जाता है। कुल के चिराग के लिए कई लोग अपनी नैतिकता व ईमानदारी को दांव पर लगा रहे हैं। स्कूल अवकाश के बाद वह किसी न किसी गांव की ओर रुख करते हैं और लोगों को बुलाकार उन्हें बताते हैं कि जिन घरों में बेटियां होती हैं वे घर अधिक समृद्ध एवं खुशहाल होते हैं। वह वर्षों से चली आ रही मान्यता को तोड़ने के लिए उन्हें समझाते हैं कि आपको तो अपनी बेटियों पर गर्व होना चाहिए, क्योंकि बेटा अगर संस्कार है तो बेटी संस्कूति है। वह परिवार का भावनात्मक सहारा भी है। वह न सिर्फ परिवार के प्रति समर्पित रहती है, बल्कि संपूर्ण राष्ट्र में संस्कूति को परोसती है। तमाम तरह के पर्वों के दौरान पीतांबर अवस्थी लोगों से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की अपील करते हैं। शादियों के दौरान वे नव दंपत्तियों से बेटी बचाने का संकल्प पत्र भी भरवाते रहे हैं। बेटियों को केंद्र में रख डॉ. अवस्थी द्वारा निकाली ‘बेटियां’ पुस्तक भी काफी चर्चित रही है।

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