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गांवों की लोक संस्कृति और विरासत को खंडहर हो रहे घरो  की दीवारों पर संजोया जा रहा है। इस काम में लगे दीपक रमोला को उम्मीद है कि इससे न केवल पलायन रुकेगा बल्कि पर्यटन को बढ़वा देकर रिवर्स माइग्रेशन भी होगा

बेहतर भविष्य और मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उत्तराखण्ड के गांव धीरे-धीरे खाली हो रहे हैं। लोग अपने पुश्तैनी गांव को छोड़कर शहरों की ओर बढ़ चले हैं। गांवों के खाली होने पर सबसे ज्यादा नुकसान विरासत को हो रहा है। ऐसा ही एक गांव है बागेश्वर जनपद का खाती गांव। पर्वतारोहियों के रोमांच का सबसे शानदार टै्रक पिंडारी ग्लेशियर मार्ग पर खाती गांव बागेश्वर जनपद का अंतिम गांव है। प्रकृति ने इस गांव पर अपना सब कुछ न्यौछावर किया है। लेकिन आजादी के ७० साल बाद भी ये गांव विकास से वंचित है। बेहद विपरीत परिस्थतियों में यहां के वाशिंदों ने कभी हार नहीं मानी। बरसों से यहां के लोंगों ने अपनी लोकसंस्कूति विरासत और वास्तुकला को संजोकर रखा है।

आज कल यह गांव लोगों के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है। विगत एक महीने से गांव में बाहर से आए लोगों का जमाबड़ा लगा है। लोगों की चहलकदमी से गांव में पसरा सन्नाटा टूट गया है। गांव में इन दिनों देश के विभिन्न हिस्सों से आए युवा और बेहतरीन चित्रकारों की एक पूरी टीम गांव के मकानों की दीवारों पर गांव की पुरानी यादों को चित्रों से उकेर रहे हैं। इस मिशन को अंजाम दिया है चम्बा ब्लॉक के कोट गांव निवासी होनहार युवा दीपक रमोला के  प्रोजेक्ट फ्यूल के द्वितीय एडिशन और हंस फाउंडेशन की जुगलबंदी ने। इस प्रोजेक्ट के तहत गांव के मकानों की दीवारों पर चित्रकारी की जा रही है। चित्रों के माध्यम से गांव के जीवन का दस्तावेजीकरण किया जा रहा है। यह उत्तराखण्ड का दूसरा गांव है जहां इस तरह की पहल की जा रही है। इससे पहले टिहरी के सौड़ गांव में भी सफल प्रयास किया जा चुका है।

बॉलीवुड बादशाह शाहरूख खान ने एक कार्यक्रम में इस प्रयास कि भूरि-भूरि सराहना की है। एनडीटीवी न्यूज चैनल ने भी इस पर विशेष एपीसोड में प्रसारित किया है। प्रोजेक्ट फ्यूल और हंस फांडेशन के सहयोग से खाती गांव के मकानों पर गांव की पुरानी यादों को चित्रों के माध्यम से उकेरा गया है। जिसमें एक दीवार पर गांव में परंपरागत रीति-रिवाज के तहत बारात में दुल्हान को ले जाते हुए दूल्हे की तस्वीर है। रंगों के जरिए उस दृश्य को सजीव कर दिया है। एक मकान की दीवार पर परंपरागत फूलदेई त्योहार के दृश्य को उकेरा है। वहीं एक अन्य मकान की तस्वीर में गांव के लोगों का जंगली जानवरों के साथ को जीवंत किया है। कुमाऊं की वैभवशाली और लोकसंस्कूति की पहचान ऐपण कला को भी एक मकान की दवारों पर जीवंत किया है। कुल मिलाकर इन चित्रों के माध्यम से गांव के पौराणिक इतिहास] जीवनशैली] दिनचर्या और कार्यों को अंकित किया गया है। जिससे पता चल सके कि पहले गांव की तस्वीर क्या थी और अब क्या है।

विगत २० वर्षों से हिमालय के गांवों की समस्याओं से भलीभांति वाकिफ और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में निरंतर भागीदारी करती ज्योत्सना खत्री कहती हैं कि ^प्रोजेक्ट फ्यूल^ के तहत खाती गांव के मकानों की दीवारों पर गांव की पुरानी यादों को संजोया जा रहा है। यह अपने आप में एक अनोखी पहल है। गांव के हर मकान की दीवार गांव के इतिहास] लोकजीवन] लोक संस्कूति] विरासत को बयां कर रही है। इससे न केवल पहल गांव छोड़ चुके लोगों को वापस लौटाने को प्रेरित करेगी] बल्कि विलेज टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलेगा। देश&विदेश से पिंडारी ग्लेशियर आने वाले पर्यटकों को भी गांव की जानकारी मिल सकेगी। इस तरह के अभिनव प्रयास जरूर पलायन के कारण खाली हो चुके गांवों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं।आपको बताते चलें कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी दीपक रमोला मुंबई विश्वविद्यालय से मास मीडिया स्टडीज में एक टे्रंड स्पीकर शिक्षक लेखक  अभिनेता गीतकार और पत्रकार है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा कैंसर थिएटर प्रोडक्शंस और नो लाइसेंस के साथ काम करने के बाद दीपक ने थियेटर में अनुभव हासिल किया है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हाउस  गढ़वाल पोस्ट और सीएनएन आईबीएन दोनों के साथ काम भी किया है। एक अभिनेता के रूप में दीपक ने राजश्री प्रोडक्शन के आईआई लाइफ में काम किया है। सलमान खान के साथ बॉडीगार्ड में और धारावाहिक  ससुराल सिमर का में भी काम किया है। दीपक ने हिंदी फिल्म मांझी सहित कई फिल्मों के लिए गीत भी लिखे हैं। दीपक को  प्रोजेक्ट फ्यूल  के लिए विचार और प्रेरणा अपनी मां से मिली थी। आज उनकी प्रेरणा से दीपक का प्रोजेक्ट फ्यूल पूरे देश में अपनी चमक बिखेर रहा है।वास्तव में दीपक के  प्रोजेक्ट फ्यूल के तहत सौंड़ गांव के बाद हिमालय के अंतिम गांव खाती के मकानों की दीवारों पर लोकसंस्कूति  लोकजीवन विरासत और इतिहास को संजोना अपने आप में एक अभिनव प्रयास है। दीपक ने इस प्रोजेक्ट के जरिए कार्य करके दिखाया है कि यदि कार्य करने की ललक] जुनून और जज्बा हो तो कोई भी कार्य कठिन नहीं होता है। कई लोग अब आशा करने लगे हैं कि सौड़ गांव से शुरू हुआ ये अभियान हिमालय के अंतिम गांव खाती से होते हुए अन्य गांवों तक पहुंचे और रिवर्स माइग्रेशन के लिए मील का पत्थर साबित हो।

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