कवि प्रकाश ‘शूल’ सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में पैदल घूम- घूमकर एक बेहतर समाज बनाने के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं
बेटी अनमोल है, बिटिया बचेगी तो कुटिया बचेगी। जल बचेगा तो कल बचेगा। वन बचेगा तो पर्यावरण बचेगा। सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में पैदल घूम-घूमकर एक कवि प्रकाश ‘शूल’ इसी तरह जनजागरूकता अभियान चलाए हुए हैं। चंपावत जनपद के क्वैराल घाटी के निरौ (जोशीखोला) के रहने वाले प्रकाश की थीम है कि छोटे-छोटे प्रयासों से समाज को बेहतर बनाया जा सकता है।
लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए वह जनजागरण अभियान चलाते हैं। पैदल यात्रायें करते हैं। कविता पाठ करते हैं। इनका उपयोग समाज को जगाने के लिए करते हैं। वह कवि, साहित्यकार, समाजसेवी व संस्कृतिकर्मी के रूप में समाज में फैली तमाम तरह की विकृतियों के खिलाफ हर दिन उठ खड़े होते हैं।
एमए भूगोल व शिक्षा विशारद की डिग्रियां लिया यह व्यक्ति एकदम फाकामस्त है। इनका पूरा जीवन समाज को समर्पित है। तमाम आर्थिक दिक्कतों के बाद भी वह अर्थ के पीछे नहीं भागे। लोग अपने अधिकारों के लिए जागरूक हों इसके लिए वह जिला विधिक प्राधिकरण के तहत पराविधिक स्वयंसेवी के तौर पर सदूरवर्ती गांवों में कानूनी जागरूकता अभियान चला रहे हैं।
कुमाऊंनी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने तथा इसे स्कूली पाठ्यक्रमों में लागू करने को लेकर वह लगातार संघर्षरत हैं। समाज में व्याप्त कुरीतियों पर वह अपनी रचनाओं के माध्यम से तंज कसते हैं।
कुमाऊंनी साहित्य के संरक्षण के लिए प्रकाश ने बेहतरीन काम किया है। मनैकि तीस, जन पिया शराब, ढेकुवा, म्यारा पहाड़ाकि चैलि जैसे सामाजिक विषयों को केन्द्र में रखकर उन्होंने कुमाऊंनी काव्य संग्रहों का प्रकाशन किया है। रोटियों का फोटो स्टेट, शूल पथ, मेरे देश की माटी चन्दना जैसे हिन्दी काव्य संग्रह भी प्रकाशित किये हैं।
स्थानीय भाषा, संस्कृति, समाज तो इनकी रचनाओं में स्थान पाते ही हैं, लेकिन अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों पर चोट इनकी प्राथमिकता में रहा है। साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक सरोकार ही इनके जीवन का मुख्य लक्ष्य रहा है।
पधनज्यू (उपन्यास), क्वैरालघाटी का इतिहास, गौ-गंगा- गायत्री, आ पहाड़ जानू, रात की रानी जैसी सामाजिक परिवेश को केन्द्र में रखकर इनके द्वारा लिखी गई रचनायें प्रकाशनाधीन हैं। वह निरन्तर तमाम पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों को केंद्र में रखकर लेखन करते आए हैं।
आकाशवाणी व दूरदर्शन में काव्य पाठ के माध्यम से सामाजिक विषयों को उठाते रहे हैं। कवि शूल कहते हैं कि समाज में नशे के चलते महिलाओं को पीटे जाने की घटना, कई तरह से होता आ रहा उनका शोषण, नशे वाले परिवारों के बच्चों की छूट जाने वाली पढ़ाई, बच्चों की दब जाने वाली मेधा और कन्याओं की भू्रण में ही हो रही हत्या, इस तरह के तमाम सवाल मुझे लगातार विचलित करते रहे।
इसी को देखते हुए वर्ष 1991 में मैंने नशे के खिलाफ अभियान चलाया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। बाद में इसमें बेटी बचाओ, वायु प्रदूषण की खिलाफत, पर्यावरण संरक्षण जैसे कई विषय जुड़ते चले गए। मैंने स्वहित को कहीं दूर छोड़ परहित को अपना लिया। अब यही जीवन का लक्ष्य है कि हमारा समाज एक बेहतर व संस्कारित समाज के रूप में दिखे।