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देवभूमि उत्तराखण्ड की बेटियों की बहुमुखी प्रतिभा से आज हर कोई वाकिफ हैं। राज्य की बेटियों ने आज हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत का परचम लहराया है। ऐपण कला हो या फिर पेंटिंग कला, राज्य की बेटियां उत्तराखण्ड की संस्कृति की छवि को अपनी इसी कला से उजागर करने का कार्य कर रही हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही बेटी से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसने अपनी कला से प्रदेश की संस्कृति को देश में भी प्रसिद्ध किया है। वह प्रतिभा हैं हल्द्वानी की होनहार बेटी कुसुम पाण्डे

 

  • संजय चौहान

तस्वीरें जहां किसी चीज को याद बनाकर रखने का बेहतरीन जरिया होती हैं तो वहीं कल्पना व असलियत लिए तस्वीरें अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। कला के विभिन्न रूपों में चित्रकारी कला का सूक्ष्मतम प्रकार हैं जो रेखाओं और रंगों के माध्यम से मानव चिंतन और भावनाओं को अभिव्यक्त करती हैं। इतिहास के हजारों वर्ष पूर्व जब मनुष्य केवल गुफाओं में रहता था, तब भी वह अपनी सुरुचिपूर्ण संवेदनशीलता और सृजनात्मक आवेग की संतुष्टि के लिए अपनी गुफा को चित्रित करता था। भारतीयों में कला और रूपरेखा इतनी गहरी अंतर्निहित है कि प्राचीन काल से ही उन्होंने चित्र और रेखाचित्र बनाए, उन कालों में भी, जिनका हमारे पास कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं। हल्द्वानी की होनहार बेटी कुसुम पाण्डे की कूची कैनवास पर ऐसे चलती है कि हर पेंटिंग कुछ अलग ही एहसास कराने लगती हैं। बेहद मिलनसार, मृदुभाषी व्यक्तित्व की धनी कुसुम पाण्डे की पेंटिंग्स में आपको बहुत गहराई और संदेश मिलेगा। जो हजार शब्द नहीं कह पाते उसे कुसुम की पेंटिंग्स कह जाती है।

 

भारत मण्डपम की तैयारियों के दौरान पेंटिंग करती कुसुम

 

ये है कुसुम पाण्डे

उत्तराखण्ड के हल्द्वानी निवासी कुसुम पाण्डे आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हंै। प्रतिभा की धनी कुसुम ने पेंटिंग से ही एक अपना अलग मुकाम बनाया है। हल्द्वानी में पली बढी कुसुम की स्कूली पढ़ाई यहीं से हुई जिसके बाद इन्होंने छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ स्थित इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से वर्ष 2015 में बीए फाइन आर्ट की डिग्री प्राप्त की। तत्पश्चात दिल्ली विश्वविद्यालय से काॅलेज आफ आर्ट से वर्ष 2017 में मास्टर आॅफ फाइन आर्ट की डिग्री हासिल की। इस दौरान कुसुम ने पेंटिंग की दृश्यकला विधा में महारथ हासिल कर ली थी। इसके अलावा कुसुम की चित्रकला, मूर्तिकला और विभिन्न प्रकार के क्राफ्ट बनाने में भी बेहद रुचि है।

महिलाओं के संघर्ष और प्रकृति से कला की ओर बढा रूझान!

बचपन से ही कुसुम को उत्तराखण्ड के गांव और यहां की औरतों के दैनिक जीवन के क्रियाकलाप, सुंदर वेशभूषा, आभूषण, लोकजीवन, लोककला व सांस्कृतिक जीवन, खेत-खलिहान, पहाड़, नदियां, जंगल, बादल बेहद आकर्षित करते थे। यहीं से उनमें कला के प्रति आकर्षण बढ़ा। देश का एक बड़ा चित्रकार बनने की तमन्ना मन मे लिए कुसुम ने पेंटिंग को करियर बनाने की ठानी और आज वह पेंटिंग में देश की जानी पहचानी हस्ती बन चुकी हैं। बकौल कुसुम, दृश्यकला विधा में निपुण कलाकार अपनी रचनाशीलता को किसी सरफेस, जैसे जिंक, काॅपर प्लेट, स्टोन (लिथोग्राफी) पर ड्राइंग करके उन्हें उकेरता है। अपनी थीम को उकेरने के बाद वह विभिन्न रसायनिक अम्लों के प्रयोग व अन्य विधियों से ब्लाॅक बनाता है और फिर उनके प्रिंट पेपर कपड़े पर लिए जाते हैं।

 

कुसुम की उत्तराखण्ड वू-मैन विद नेचर की जिंक प्लेट पेंटिंग ने खींचा देश दुनियाभर का ध्यान

कुसुम 2018 में तब चर्चाओं में आई जब उनकी उत्तराखण्ड वू-मैन विद नेचर शीर्षक वाली जिंक प्लेट पर उकेर कर बनाई गई पेंटिंग राष्ट्रीय ललित कला अकादमी को इस कदर अच्छी लगी कि दुनियाभर के चित्रकारों की पेंटिंग बिनाले-2018 के आयोजन के लिए इसे चुना गया। दुनियाभर के चित्रकारों की पेंटिंग्स की इस प्रतियोगिता में कुसुम की पेंटिंग को खूब वाहवाही मिली और हर किसी ने इसे सराहा। कुसुम ने अपनी इस पेंटिंग में एक पहाड़ की स्त्री के जीवन के सभी पहलुओं को बेहद  खूबसूरती से उकेरा है। इसमें किसी कलाकार को पहाड़ का ग्राम्य जीवन नजर आएगा तो वहां की स्त्री की पारंपरिक वेशभूषा और कुदरती सौंदर्य की झलकियां साथ-साथ देखने को मिलेंगी। इस पेंटिंग की एक सबसे अहम बात यह है कि इसमें पहाड़ की एक स्त्री मशरूम पर खड़ी है। जो इस बात को चरितार्थ करती है कि महिलाओं का जीवन संघर्ष बेहद कठिन है। कुसुम की ये पेंटिंग अमेरिका, जापान, जर्मनी, बांग्लादेश, दुबई, नार्वे समेत तमाम मुल्कों में सराही गई।

कुसुम की पेंटिंग ने अंतराष्ट्रीय फलक पर लोगों का मोहा मन

कुसुम की बनाई पेंटिंग ने रामनगर में आयोजित जी 20 सम्मेलन में पूरे विश्व को उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति से रूबरू करवाया तो वहीं बद्रीनाथ में भगवान विष्णु के 10 अवतारों सहित बद्रीनाथ धाम के चित्रों को उकेरने का काम किया। बद्रीनाथ में कुसुम ने पेंटिंग्स के जरिए भगवान विष्णु की जीवन गाथा का विस्तार से अवलोकन भी कराया है, यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति की मीटिंग की अध्यक्षता भारत प्रथम बार कर रहा है। 21 से 31 जुलाई तक दिल्ली में हुई, ‘यूनेस्को विश्व धरोहर समिति’ की मीटिंग के लिए उत्तराखण्ड की कलाकार कुसुम पांडे को संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार और ललित कला अकादमी ने प्रोजेक्ट ‘पारी’ (भारत की सार्वजनिक कला) के अंतर्गत इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास मेहराम नगर अंडरपास और भारत मण्डपम की दीवारों का नवीनीकरण करने का कार्य सौंपा था। जिसमें भारत के सात प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थलों, अर्थात् ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र, नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय पार्क, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, मानस वन्यजीव अभयारण्य, सुंदरबन केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और पश्चिमी घाट पर प्रकाश डालने वाले विषय के साथ गुजरने वाले प्रतिनिधियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए डिजाइन किया गया है और साथ ही भारत मण्डपम में उत्तराखण्ड की लोक कला ऐपण को भी चित्रित किया। लगभग 35 फीट ऊंची और 37000 स्क्वायर फीट दीवारों को कुसुम ने अपनी टीम के साथ 15 दिनों में इस कार्य को संपन्न किया। कुसुम और उनकी टीम ने किसी भी चीज की परवाह न करते हुए इस परियोजना को पूरा करने के लिए रोजाना 16 से 18 घंटे दिन-रात काम किया। जिसके चलते उन्होंने 15 दिन में एक ऐसा खास रिकाॅर्ड बना दिया है, जिसकी चर्चा पूरा देश कर रहा है।

कुसुम का रंग गीत आर्ट सेंटर!

कुसुम नें हल्द्वानी में रंग गीत आर्ट सेंटर नाम से उत्तराखण्ड का पहला फाइन आर्ट स्टूडियो शुरू किया है। कुसुम कहती हैं कि उत्तराखण्ड में फाइन आर्ट में करियर बनाने के लिए संसाधनों का आभाव और आगे बढ़ने के अवसर/प्लेटफार्म बेहद सीमित हैं। कुसुम ने ये सब बेहद करीब से देखा है इसलिए उन्होंने अपने पति मनोज पाण्डे के साथ मिलकर स्टूडियो खोला। वह कहती हैं कि स्टूडियो के होने से कलाकारों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा। कला को करियर बनाने वाले प्रतिभाशाली युवाओं को उत्तराखण्ड में ही मौके मिलें इसी उद्देश्य से हमने रंग गीत आर्ट सेंटर खोला है। कुसुम कहती हैं कि कला उनका जुनून है। वह अपनी लोक संस्कृति से बेहद प्यार करती हैं इसलिए वो अपनी कला में उत्तराखण्ड की संस्कृति को ही दिखाती हैं। उनका मकसद है कि वह राज्य के युवाओं को दृश्यकला के क्षेत्र में आगे बढ़ाने में सहायता करे इसलिए उनकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। कुसम कहती हैं कि आज जहां हूं उसके पीछे पति मनोज पाण्डे समेत तमाम गुरुओं का हर कदम पर साथ रहा और प्रोत्साहन मिला।

विभिन्न अवसरों पर मिल चुके हैं अनगिनत सम्मान

हल्द्वानी की कुसुम पाण्डे की कूची कैनवास पर ऐसे चलती हैं कि हर पेंटिंग कुछ अलग ही एहसास कराने लगती हैं। कुसुम के हुनर की सराहना अब देश भर में होने लगी हैं। उन्हें विभिन्न अवसरों पर विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। कुसुम को अब तक 40 से अधिक पुरस्कार मिल चुके हैं। जिनमें नंदा शक्ति सम्मान, ललित कला अकादमी पुरस्कार सहित अन्य सम्मान शामिल हंै। विगत दिनों देहरादून के राजभवन में आयोजित बसन्तोत्सव में भी कुसुम की पेंटिंग्स को हर किसी ने सराहा। इस दौरान उन्हें बसन्तोत्सव में सम्मानित किया गया।

 

 पेंटिंग का मुआयना करते नैनीताल सांसद अजय भट्ट
वेंकैया नायडू से सम्मानित कुसुम

कुसुम की पेंटिंग की इन जगह लग चुकी हैं प्रदर्शनी

कुसुम पाण्डे की पेंटिंग्स की हल्द्वानी से लेकर नैनीताल, बद्रीनाथ, अल्मोड़ा, देहरादून के अलावा दिल्ली, मध्यम प्रदेश, चंडीगढ़, गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार आदि राज्यों में भी प्रदर्शनी लग चुकी हैं। जहां हर किसी ने कुसुम की कला की भूरी-भूरी प्रशंसा की। वर्ष 2021 में ललित कला अकादमी की ओर रविंद्र भवन दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी, 2021 में ही गौरी स्टूडियो दिल्ली में महिलाओं पर आधारित राष्ट्रीय पेंटिंग प्रदर्शनी, 2020 में कालांतर फाउंडेशन नागपुर की ओर से आयोजित आॅनलाइन फाउंडेशन में कुसुम की पेंटिंग को स्थान मिल चुका है।

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