यदि आप में दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो आपकी आस्था आपके पेशे में कभी आड़े नहीं आयेगी। हम बात कर रहे हैं 85 वर्षीय गोविदन बालकृष्णन की जिनको मस्जिद मैन के रूप में जाना जाता है। वे कहते हैं, अपने छह दशकों के करियर में ‘‘मानवता की एकता’’ में ही उनका प्यार है। गोविंदन बालकृष्णन भारत के केरल के तिरूअनंतपुरम से हैं। वे अपने साधारण से घर में गीता, बाइबिल और कुरान की प्रातियां रखते हैं। पेशे से एक भवन डिजाइनर गोविंदन धार्मिक सद्भाव में दृढ़ विश्वास रखते हैं। इतना विश्वास कि रमजान और सबरीमाला तीर्थ यात्रा के दौरान 41 दिनों के उपवास का कठोर पालन वे करते हैं। उनकी पत्नी ईसाई हैं इसलिए वे उनके साथ ईस्टर के उपवास में भी शामिल होते हैं। उनका कहना है कि वह सभी धर्मों का स्वागत करते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं। उनके दो बेटे हैं। जिसमें एक की शादी मुस्लिम लड़की से हुई है।

कैसे भवन डिजाइनर बने गोविंदन कृष्णनन गोविंदन कृष्णनन का कहना है कि वह अपने परिवार के सामने आगे ने वाली वित्तीय कठिनाइयों के कारण कॉलेज जाने का खर्च नहीं उठा सकते थे। इसलिए वह स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद एक प्रशिक्षु के रूप में अपने पिता एवं अन्य भवन निर्माण ठेकेदार के साथ जुड़ गए। उन्होंने अपने पिता द्वारा बनाई जा रही इमारतों के ब्लूप्रिंट का अध्ययन कर शुरुआत की। 1960 में ख्याति प्राप्त एंगलो-इंडियन ड्राफ्टसमैन एल ़ए ़सलदाना से उनकी मित्रता हो गई। इनसे इन्होंने स्केचिंग और ड्राइंग सीखी? गोविंदन कृष्णनन ने केरल के लोक निर्माण विभाग में एक अवैतनिक प्रशिक्षु के रूप में भी काम किया, जिससे इन्हें शिल्प कार्य सीखने में मदद मिली। बाद में उन्होंने केरल के प्रतिष्ठित पलायम मस्जिद पुनः निर्माण में अपने पिता की सहायता करना शुरू कर दिया। इस मस्जिद के पुनः निर्माण में पांच वर्ष लगे। इस पुर्ननिर्माण ने उनकी रूचि वास्तुकला में जगा डाली इसके बाद इन्होंने कई शॉपिंग मॉल, सामुदायिक केंद्र और आवासीय स्थानों को तैयार किया।

जिस मस्जिद कर गोपाल कृष्णनन और उनके पिता ने पुनर्निर्माण किया उसका सन् 1964 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ़ जाकिर हुसैन द्वारा उद्घाटन किया गया। ये इनके लिए बड़ी गर्व की बात थी। इसके बाद तो वे पुनर्निर्माण विशेषज्ञ बनते चले गए। अब तक वे कई 88 मस्जिदों का पुनर्निर्माण कर चुके हैं।गोपाल कृष्णनन का दिल और आत्मा मस्जिदों के निर्माण में बसी हुई है। वे बड़ी ही खूबसूरती से मस्जिदों के मीनार और गुंबदों के नक्शे तैयार करते हैं। वे तब तक उन नक्शे को तैयार करके खारिज करते रहते हैं जब तक गुंबद और मीनार को एक खास शैली और ढांचे मंे ढाल नहीं लेते। अपनी वास्तुकला को नया रंग और नई संरचनाएं देकर इन्होंने कई मस्जिदों को मॉर्डन रूप दिया। जैसे करूणा गपल्ली की शेख मस्जिद में प्रेम का प्रतीक ताजमहल। कोल्लम के पास जियाराधुमूडु मस्जिद इंडो-सरसोनिक शैलियों का मेल है। जबकि तिरूवंतपुरम में चलई मस्जिद समकालीन स्थापत्य शब्दावली का अनुसरण करती है। इसके अलावा कई मंदिर और चर्च बनाने की उपलब्धियां भी उनके नाम हैं। इतना ही नहीं गोविंदन ने अनेकों कॉलेजों और अस्पतालों का निर्माण भी किया है। उनकी उपलब्धियों में एरूमेली स्थित बाबर मस्जिद का जीर्णोद्वार खासा महत्व रखता है। तिरूवंतपुरम की बीमा मस्जिद का जीर्णोद्धार भी शामिल है। जो दक्षिण भारत में मुसलमानों की एक प्रमुख जियारतगाह है।
हालांकि इनके द्वारा बनाई गयी एक मस्जिद के डिजाइन में विवाद भी खड़ा हुआ। इन्होंने बीमपल्ली मस्जिद में कमल की आकृति का इस्तेमाल किया। कमल भारत का राष्ट्रीय फूल है। इसलिए एक कलाकार के रुप में इसका उपयोग करने में उन्हें कोई बुराई नहीं देेखी। लेकिन कुछ लोगों ने इसको अन्यथा देखा और हंगामा खड़ा किया। फिर भी इस प्रतिरोध के बावजूद मस्जिद के निर्माण का कार्य जारी रखा गया। गोविंदन कहते हैं कि भगवान के घर को पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए। वर्तमान समय में जब देश की गंगा-जमुनी संस्कृति गंभीर संकट का सामना कर रही है। गोविंदन सरीखे धर्म निरपेक्ष नागरिक अपनी लगन और कार्यक्षमता के जरिए हमारी सांस्कृति विरासत और देश की अखंड़ता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दे एक आदर्श नागरिक बन उभरे हैं।