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विवादों के साये में सद्गुरू

 

आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव इन दिनों खासी सुर्खियां बटोर रहे हैं। यह सुर्खियां लेकिन आध्यात्मिक कारणों चलते नहीं, बल्कि उन पर और उनकी संस्था ‘ईशा फाउंडेशन’ पर लग रहे आरोपों से पैदा हुई है। चेन्नई के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर की याचिका पर मद्रास हाईकोर्ट ने ‘ईशा फाउंडेशन’ की गतिविधियों पर पुलिस जांच के आदेश देने और इस आदेश बाद भारी पुलिस बल का फाउंडेशन के कैम्पस में जा पहुंचने का मुद्दा देश-विदेश में सद्गुरु के अनुयायियों को बेचैन कर रहा है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा सद्गुरु को तात्कालिक राहत तो दे दी है लेकिन ‘ईशा फाउंडेशन’ से जुड़े कई पुराने विवाद दोबारा से उभरने लगे हैं जो आने वाले समय में सद्गुरु की मुसीबतें बढ़ा सकते हैं

एक दौर था जब साधु-संत मायावी प्रलोभनों से दूर रहकर समाज को संस्कारित व धार्मिक बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाते थे। स्वयं सात्विक-सरल जीवन जीते थे। काम, क्रोध, लोभ को त्याग कर खुद का जीवन दूसरों के हितार्थ कर देते थे। आज जिन साधु-संतों को हम देख रहे हैं इनकी लीला अपरम्पार है यह बताना मुश्किल है। आए दिन इनकी काली करतूतें सार्वजनिक होती रहती हैं। फिर चाहे वो बलात्कार के मामले में सीबीआई कोर्ट से 10 साल की सजा पाने वाले गुरमीत राम रहीम सिंह हो या बाबा रामपाल हो या मुंबई में आलीशान आश्रम में रहने वाली राधे मां या आसाराम बापू के कारनामों से तो सब वाकिफ हैं ही। आशाराम बापू ने अपने गुरुकुल में पढ़ने वाली एक किशोरी का सुनियोजित तरीके से रेप किया। अब जोधपुर में जेल में हैं। बंगलौर के परमहंस नित्यानंद के कथित सेक्स वीडियो ने 2010 में सनसनी फैला दी थी। ऐसे ही सैकड़ों धर्म गुरु और बाबा हैं जिन पर जमीन कब्जाने से लेकर बलात्कार और हत्या करने के आरोप लगे हैं।

अब विश्वभर में ख्याति प्राप्त सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ‘ईशा

फाउंडेशन’ विवादों का केंद्र बन उभर रहा है। चेन्नई के एक रिटायर्ड प्रोफेसर एस. कामराज ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सद्गुरु जग्गी
वासुदेव पर गम्भीर आरोप लगाए हैं। उनका आरोप है कि आश्रम में उनकी बेटियां लता और गीता को बंधक बनाकर रखा गया है। गत् पखवाड़े याचिका की सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने गुरु जगदीश ‘जग्गी’ वासुदेव ने सवाल पूछा कि जब आपने अपनी बेटी की शादी कर दी और वो फैमिली लाइफ बिता रही है तो दूसरों की बेटियों को क्यों संन्यासी बना रहे हैं? कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु पुलिस ‘ईशा फाउंडेशन’ से जुड़े सभी आपराधिक मामलों की जांच करें और रिपोर्ट पेश किए। इसके अगले दिन एक अक्टूबर को करीब 150 पुलिसकर्मी आश्रम में जांच करने पहुंचे। कोर्ट ने ‘ईशा फाउंडेशन’ को कटघरे में खड़ा कर दिया है हालांकि सद्गुरु ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मद्रास हाईकोर्ट से अपने पास ट्रांसफर कर लिया है और तमिलनाडु पुलिस को हाईकोर्ट द्वारा मांगी गई स्टेटस रिपोर्ट शीर्ष अदालत में जमा करने को कहा है। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने पुलिस को हाईकोर्ट के निर्देशों के पालन में आगे कोई कार्रवाई करने पर रोक लगा दी है। सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा ‘आप सेना या पुलिस को ऐसी जगह दाखिल होने की इजाजत नहीं दे सकते। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने खुद दोनों लड़कियों से बात की जिन्होंने कहा कि वे अपनी मर्जी से फाउंडेशन में रह रही हैं। मामले की अगली सुनवाई 18 अक्टूबर को होगी। गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट में ये मामला कोयम्बटूर में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय में रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने दाखिल किया है। जिसमें प्रोफेसर ने आरोप लगाया है कि उनकी दो बेटियां हैं और दोनों ने इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर डिग्री ली है। दोनों ही ‘ईशा फाउंडेशन’ से जुड़ी थीं। याचिकाकर्ता की शिकायत यह थी कि फाउंडेशन कुछ लोगों को गुमराह करके उनका धर्म परिवर्तन कर उन्हें ‘भिक्षु’ बना रहा है और उनके माता-पिता तथा रिश्तेदारों को उनसे मिलने भी नहीं दे रहा है। याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस शिवगनम ने सख्ती से पूछा कि सद्गुरु ने तो अपनी बेटी की शादी करके उसे सेटल कर दिया है। उनकी बेटी फैमिली लाइफ गुजार रही है तो वो दूसरों की बेटियों का सिर मुंडवाकर, उन्हें सांसारिक जीवन त्यागकर, उन्हें संन्यासी बनने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं? सद्गुरु के ‘ईशा फाउंडेशन’ ने इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि प्रोफेसर की दोनों लड़कियों ने कोर्ट में बताया है कि वो अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं उनके साथ कोई जबरदस्ती नहीं हुई है। इसके साथ ही सद्गुरू के ‘ईशा फाउंडेशन’ ने कहा व्यस्क व्यक्तियों को अपनी पसंद से जीवन जीने की आजादी और समझदारी है। हम किसी को भी संन्यास लेने के लिए बाध्य नहीं करते हैं, क्योंकि ये इंसान के व्यक्तिगत विकल्प हैं। उन्होंने ये भी साफ किया कि हमारे आश्रम में रहने वाले सभी संन्यासी नहीं हैं। ब्रह्माचर्य या संन्यासी बनने का फैसला उनका व्यक्तिगत होता है।

सद्गुरु पूजनीय, मौखिक दावों पर जांच सही नहीं

‘ईशा फाउंडेशन’ मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को दर्ज सभी आपराधिक मामलों का विवरण देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि हम पुलिस को दिए गए हाई कोर्ट के निर्देशों पर रोक लगाते हैं। कोर्ट ने कहा कि ये धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे हैं और यह एक बहुत जरूरी और गंभीर मामला है। सद्गुरु बहुत पूजनीय हैं। उनके लाखों अनुयायी हैं। उच्च न्यायालय मौखिक दावों पर ऐसी जांच शुरू नहीं कर सकता है।

क्या है पूरा मामला

कोयम्बटूर के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस. कामराज द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय की पीठ ने तमिलनाडु सरकार को आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ‘ईशा फाउंडेशन’ के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। अपनी याचिका में कामराज ने आरोप लगाया कि उनकी दो बेटियों को कोयम्बटूर के ईशा योग केंद्र में रहने के लिए गुमराह किया गया और फाउंडेशन ने उन्हें अपने परिवार के साथ कोई संपर्क नहीं बनाने दिया।

‘ईशा फाउंडेशन’ ने किया आरोपों का खंडन
‘ईशा फाउंडेशन’ ने सभी आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि जिन दो महिलाओं की उम्र 42 और 39 साल है, वे स्वेच्छा से संस्थान के परिसर में रह रही थीं। इन दोनों महिलाओं को उच्च न्यायालय में पेश किया गया, जहां उन्होंने इस बात की पुष्टि की।

और भी कई विवादों से घिरे हैं सद्गुरु
गौरतलब है कि आध्यात्मिक सद्गुरु जग्गी वासुदेव के नेतृत्व वाला प्रसिद्ध ‘ईशा फाउंडेशन’ कई प्रकार के विवादों में घिरा हुआ है। जग्गी वासुदेव और उनके ‘ईशा फाउंडेशन’ पर कथित तौर पर आरोप हैं कि ईशा योग केंद्र भले ही लोगों को निःशुल्क में योग सिखाता हो, मगर फाउंडेशन एक व्यवसायिक संस्था है, जो जड़ी-बूंटियों से लेकर हर वो चीज बेचती है, जिसके बदले धन मिलता हो, लेकिन दिखाया ये जाता है कि ये मानवसेवी संस्थान है। जग्गी वासुदेव पर ये भी आरोप हैं कि इसका असली काम ‘ईशा फाउंडेशन’ के नाम पर आदिवासियों की जमीनें हड़पना है और इसके लिए फाउंडेशन के अंतर्गत योग सिखाने की नौटंकी की जाती है तथा सामाजिक और सामुदायिक विकास योजनाओं की आड़ में गरीब आदिवासियों की जमीनें हथियाई जाती है।

ऐसा ही एक केस तमिलनाडु की एक आदिवासी महिला का भी है जो काफी चर्चित है। यह महिला जग्गी वासुदेव के खिलाफ अपनी जमीन के लिए कानूनी दावा कर चुकी है। उसके अनुसार मुत्थुस्वामी गौंडर ने 44 एकड़ जमीन अपने काम करने वाले 13 आदिवासीयों को भू-दान के रूप में देकर उनके नाम का पट्टा किया था, मगर वे इस पर कभी अपना अधिकार नहीं समझे और इसी 13 आदिवासियों में एक पट्टा उस आदिवासी औरत मुताम्मा के दादा को मिला था, जिसके फटे पुराने टुकड़े अब भी उसके पास मौजूद हैं। यह जमीन ‘ईशा फाउंडेशन’ के कब्जे में बताई जाती है। एक अन्य मामले में वेलिंगिरी हिल ट्राइबल प्रोटेक्शन सोसायटी ने मद्रास उच्च न्यायालय में एक पीआईएल दर्ज की जिसमें उन्होंने इक्काराई पोल्वमपट्टी के पानी से भरी धरती (वेटलैंड) पर आश्रम द्वारा बनाई गई अवैध इमारतों का विरोध किया और उसे हटवाने की मांग की थी। इसी पीआईएल से पहले 24 फरवरी 2017 को पीएम नरेंद्र मोदी इसके आश्रम में गए थे और 112 फुट ऊंचे ‘आदि योगी’ शिव की मूर्ति का उद्घाटन किया था। इस खबर ने बड़ी सुर्खियां बटोरी थी क्योंकि मूर्ति के अवैध निर्माण के साथ ही आश्रम द्वारा अतिक्रमण का एक और मामला भी बना।

एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश डी. हरिपारंथमन ने तो प्रधानमंत्री मोदी के नाम खुला पत्र भी लिखकर भेजा था, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘जब तमिलनाडु सरकार ने भी जग्गी वासुदेव द्वारा अवैध निर्माण और अतिक्रमण को माना हुआ है तो आज तक एक भी मामले में किसी अतिक्रमण को हटाने का आदेश सरकार द्वारा जारी क्यों नहीं हुआ? उच्च न्यायालय में ‘ईशा फाउंडेशन’ के अतिक्रमण वाली चार याचिकाएं आज तक लंबित हैं लेकिन यह दुःख की बात है कि ये मामले पिछले तीन सालों में एक इंच भी आगे नहीं बढ़े हैं। पीएम मोदी को ‘ईशा फाउंडेशन’ के कार्यक्रमों में नहीं जाना चाहिए क्योंकि आप एक संवैधानिक पद पर हैं।’ उन्होंने कटाक्ष करते हुए अपने पत्र में लिखा कि ‘मोदी का आगमन एक गलत संदेश प्रचारित कर रहा है और इस अवैध निर्माण को वैध करार दे रहा है।’

अवैध निर्माण के भी आरोप

‘ईशा फाउंडेशन’ पर पिछले साल अवैध निर्माण के आरोप भी लगे थे, जब मद्रास उच्च न्यायालय की एक पीठ ने 2017 की एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए जांच का आदेश दिया था। इस जनहित याचिका में ‘ईशा फाउंडेशन’ पर कोयम्बटूर के पेरूर तालुक के बोलुवमपट्टी गांव में 20 हेक्टेयर भूमि पर अनधिकृत निर्माण करने का आरोप लगाया गया था। याचिका वेल्लियांगिरी हिल्स ट्राइबल्स प्रोटेक्शन सोसाइटी द्वारा दायर की गई थी जिसमें कथित रूप से क्षेत्र में आर्द्रभूमि (वेटलैंड) को हुए नुकसान का हवाला देते हुए कथित अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की मांग की गई थी।
अगस्त 2023 में उच्च न्यायालय ने नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग से कहा कि यदि कोई अवैधता पाई जाती है तो वह उचित कार्रवाई करे। इसके बाद 2018 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने आरोप लगाया कि ‘ईशा फाउंडेशन’ ने हिल एरिया कॉन्जर्वेशन अथॉरिटी से आवश्यक पूर्व स्वीकृति के बिना बूलुवापट्टी रिजर्व वन रेंज में एक एलिफैंट कॉरिडोर का निर्माण कार्य किया।

इसके जवाब में जग्गी के नेतृत्व वाले गैर-लाभकारी संगठन ने कैग पर तथ्यों की अनदेखी करने का आरोप लगा कहा कि न तो तमिलनाडु वन विभाग और न ही पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपने-अपने जवाबी हलफनामों में कहा कि ‘ईशा फाउंडेशन’ ‘एलिफैंट करिडोर’ में है। हाथी संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले प्रख्यात वैज्ञानिकों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ‘ईशा फाउंडेशन’ हाथी गलियारे के करीब भी नहीं है।
ईशा योग केंद्र के प्रवक्ता ने ‘दि प्रिंट’ से कहा कि अवैध निर्माण के किसी भी आरोप में कोई सच्चाई नहीं है। हमारे पास सभी आवश्यक अनुमोदन और मंजूरी है। ईशा योग केंद्र के प्रवक्ता ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) द्वारा आरटीआई के जवाब का भी हवाला दिया कि तमिलनाडु में एलिफैंट कॉरिडोर की सूची में ईशा या ईशा के आस-पास के किसी भी क्षेत्र का उल्लेख नहीं है।

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